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लौं० और भस्मग्रह
ग्रह का आना हुआ । इन दोनों अशुभ कारणों से ही इन दोनों गृहस्थों ने जैनधर्म में भयङ्कर फूट और कुसम्प डालकर जैन शासन को छिन्न भिन्न कर डाला, जिसके साथ में असंयति पूजा नामक अच्छेरा का भी प्रभाव पड़ा कि दोनों गृहस्थी असंयति होने पर भी श्रमण श्रमणीओं की उदय उदय पूजा उठाकर स्वयं को पुजवाने की कोशिश करने लगे। इसके अलावा इन दोनों गृहस्थों ने जैनधर्म का क्या उद्योत किया ? यह पाठक स्वतःसोचलें, यदि हम हमारे भाइयों को नाराज न करें और थोड़ी देर के लिए उनका कहना भी मानलें, परन्तु गृहस्थ लोकाशाह के अनुयायी हमारे भाई क्या यह बतलाने का साहस कर सकेंगे कि लौंकाशाह ने नया मत निकाल कर जैन शासन का यह उद्योत किया जैसे कि :
(१) क्या लोकाशाह ने भारत के बाहर जाकर जैनधर्म का प्रचार किया था जैसे कि जैनाचार्यों के उपदेश से सम्राट चंद्रगुप्त एवं संप्रति ने किया था।
(२) क्या लौकाशाह ने किसी यज्ञ में बलि देते हुए जीवों को अभयदान दिलवाया ? जैसे प्राचार्य प्रीयग्रन्थ सूरि, प्राचार्य स्वयं प्रभ सरि एवं रत्नप्रभसरि ने लाखों प्राणियों के प्राण बचाये। इतना ही नहीं पर इन मान्य आचार्यों ने तो ऐसी पातुक प्रथा को ही निर्मूल बना दिया ।
(३) क्या लौकाशाह ने किसी जबर्दस्त राजा को प्रतियोध कर जैन धर्म का उपासक बनाया ? जैसे प्राचार्य सुहस्ती सूरिने सम्राट सम्प्रति को बनाया।
(४) क्या लोकाशाह ने किन्हीं अजैनों को जैन बनाया ?
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