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________________ तो वे महंत ही थे न ? महाराजश्री : हाँ, वे ही निमित्त थे । परंतु निमित्त तभी असर करता है, जब उपादान योग्य होता है । उपादान की योग्यता परिपक्व होती है । यदि माधोजी का उपादान (आत्मा) योग्य नहीं होता, परिपक्व नहीं होता तो महंत का निमित्त कोई असर नहीं करता । 'निमित्त और उपादान का तत्त्वज्ञान समझने जैसा है । इस तत्त्वज्ञान को समझनेवाले कभी निराश नहीं होते और कभी कर्तृत्व का अभिमान नहीं होता ! मान लो कि मैंने किसी व्यसनी व्यक्ति को उपदेश दिया और उसने व्यसन का त्याग कर दिया । यदि मैं निमित्त-उपादान का तत्त्वज्ञान जानता हूँ तो मुझे अभिमान नहीं होगा कि मैंने... मेरे उपदेश से उसने व्यसनों का त्याग कर दिया ! मैं यह समझंगा कि उसका उपादान योग्य था, इसलिए मैं निमित्त बन गया । वैसे मैंने बहुत अच्छा उपदेश दिया, फिर भी उस व्यक्ति ने व्यसनों का त्याग नहीं किया, तो मैं निराश नहीं होऊँगा अथवा उस व्यक्ति पर मुझे नफरत भी नहीं होगी। मैं समझूगा कि उसका उपादान (आत्मा) योग्य नहीं था, परिपक्व नहीं था, इसलिए वह उपदेश ग्रहण नहीं कर सका। आपकी अच्छी बात भी, सच बात भी आपका स्वजन या मित्र-स्नेही नहीं मानता है, तो आपको क्या होता है ? या तो गुस्सा आता होगा ? या तो निराशा होती होगी ? गुस्सा नहीं करना, निराश भी नहीं होना । उपादान की योग्यता नहीं होती है तो उसके ऊपर अच्छे निमित्त का भी असर नहीं होता है । निमित्तउपादान की यह बात आप अच्छी तरह समझ लो । आर्त-रौद्रध्यान से बच जाओगे। चित्त स्वस्थ रहेगा । राग-द्वेष कम हो जायेंगे । समताभाव बना रहेगा। दुनिया से कोई मतलब न हो ! विशिष्ट ज्ञानी पुरुष उपादान की योग्यता-अयोग्यता को अच्छी तरह पहचान लेते हैं। योग्यता दिखती है, तभी वे उपदेश देते हैं, अन्यथा नहीं। उस वयोवृद्ध शैवमार्गी महंत ने माधोजी की योग्यता देख ली होगी। तभी उसको उपदेश दिया और शालिग्राम तथा माला दी । ऐसे कई पापी जीव, भीतर से योग्य होने पर, उपादान की योग्यता होने पर, सत्पुरुषों की कृपा के पात्र बन जाते हैं और उनका अच्छा जीवन-परिवर्तन हो जाता है । प्रस्तावना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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