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________________ यदि भव-भ्रमखेदपराङ्गमुखं, यदि च चित्तमनन्तसुखोन्मुखम् । श्रुणुत तत्सुधियः शुभ-भावनामृतरसं, मम शान्तसुधारसम् ॥३॥ हे बुद्धिमान् सज्जनों, यदि तुम्हारा चित्त भवभ्रमण की थकान से उद्विग्न हुआ हो और अनन्त सुखमय मोक्ष प्राप्त करने तत्पर बना हो, तो शुभ भावना के अमृतरस से भरपूर भरा हुआ मेरा यह शान्तसुधारस' काव्य एकाग्र मन से सुनते रहो ।' यह उपदेश पवित्र बुद्धिमानों को : __उपाध्यायजी उनको अपना यह शान्तसुधारस' ग्रंथ सुनने के लिए कह रहे हैं कि जो सुधियः हैं । बुद्धिमानों को सुनने को कह रहे हैं, सुंदर-पवित्र बुद्धिवालों को सुनने का आमंत्रण दे रहे हैं । बड़ी महत्त्वपूर्ण बात कही है उन्होंने । उनको मूर्ख श्रोता नहीं चाहिए, उनको अल्पज्ञ श्रोता भी नहीं चाहिए, उनको मात्र बुद्धिमान श्रोता नहीं चाहिए, उनको चाहिए 'सुधियः' श्रोता ! पवित्र-निर्मल बुद्धिवाले श्रोता ! धर्मोपदेश, किसी न किसी एक अपेक्षा से दिया जाता है । जिस अपेक्षा से उपदेश दिया जाता हो, उस अपेक्षा को समझनेवाला श्रोता चाहिए । मूर्ख श्रोता, सामान्य बुद्धिवाला श्रोता, वक्ता की उस अपेक्षा को नहीं समझ सकता है । मलिन बुद्धिवाला श्रोता भी वक्ता के अभिप्राय को नहीं समझ पाता है, इसलिए वह अर्थ का अनर्थ कर देता है । इसलिए वक्ता को चाहिए कि वह श्रोताओं को पहचानें । श्रोताओं की बौद्धिक योग्यता को पहचानें । उनकी धार्मिक-साम्प्रदायिक मान्यताओं को पहचानें । श्रोताओं की बौद्धिक योग्यता समझकर उपदेश देने का होता है । उपदेश का विषय, उपदेश की भाषा...भी श्रोताओं की योग्यता के अनुसार होनी चाहिए। __ एक शहर में हम लोग गये । उपाश्रय के एक ट्रस्टी ने कहा : यहाँ थोड़े दिन पहले एक बड़े ज्ञानी मुनिराज आये थे, पंडित थे । उनका प्रवचन बहुत अच्छा था । हम लोग तो समझ भी नहीं पाये । उन्होंने सापेक्षवाद, नय, निक्षेप...वगैरह की बातें की...परंतु हम कुछ नहीं समझ पाये । थे बड़े विद्वान्...पंडित !' है न बुद्धिमान लोग ! जो विद्वान्, श्रोताओं नहीं समझ सके वैसा उपदेश दें...वे पंडित ! आपके पल्ले कुछ न पड़े, वैसा बोले, वे पंडित ! उपाध्यायजी वैसे श्रोता चाहते हैं कि जो निर्मल-पवित्र बुद्धिवाले हो ! जैन परिभाषा को जाननेवाले हो । जैन परिभाषा का ज्ञान श्रोताओं को होना आवश्यक है। जैसे पहले ही श्लोक में पंचाश्रव शब्द आया। पाँच आश्रव । यदि आश्रय प्रस्तावना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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