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________________ सरदार ने (जो कि एक व्यापारी था) नरवीर की सगर्भा पत्नी को मार डाला । नरवीर अपने प्राण बचाकर भाग खड़ा हुआ । सैनिकों ने उसके अड्डे को जला दिया। नरवीर दूर-दूर एक जंगल में जा पहुँचा । एक वृक्ष की छाया में हताश-निराश होकर बैठ गया । वह थक गया था। उसका सर्वनाश हो गया था। उसके मन में वैर की आग सुलग रही थी। वह अत्यंत अशान्त, उद्विग्न और खिन्न था। थोड़ी देर के बाद उस जंगल के रास्ते से कुछ जैन साधु गुजरते थे । नरवीर ने साधुओं को देखा। वह खड़ा हुआ और सबसे आगे जो आचार्य चल रहे थे, उनके सामने जाकर प्रणाम किया। वे आचार्य थे यशोभद्रसूरिजी। यशोभद्रसूरिजी ने नरवीर को धर्मलाभ' का आशीर्वाद देकर जिनवाणी का उपदेश दिया। हिंसा वगैरह आश्रवों के कटु परिणाम बताये । क्षमा वगैरह धर्मों का श्रेष्ठ प्रभाव बताया। उसके हृदय को शान्त-उपशान्त किया । वैरभावना को मिटा दिया। सन्मार्ग पर स्थापित किया । एकशीला नगरी में भेजा...। आढर श्रेष्ठी का परिचय करवाया...! परिणाम स्वरूप उसका जीवन धर्ममय बना, मृत्यु समाधिमय हुआ और दूसरे भव में वह राजा कुमारपाल बना ! यह उपकार किस का था? दुर्गति में जाते हुए नरवीर की किसने रक्षा की ? जिनवाणी ने ! यशोभद्रसूरिजी ने जिनवाणी सुनायी थी न ? इस प्रकार इस दुनिया पर जिनवाणी ने असंख्य उपकार किये हैं । दुर्गति में गिरते हुए असंख्य जीवों को बचा लिये हैं । जिनवाणी और कुमारपाल : नरवीर का कैसा सौभाग्य था, कि दूसरे जन्म में भी कदम-कदम पर उनकी रक्षा करनेवाली जिनवाणी मिली । नरवीर के जन्म में गुरुदेव यशोभद्रसूरिजी मिले थे, कुमारपाल के जन्म में आचार्यश्री हेमचन्द्रसरिजी मिले ! नरवीर के जन्म में सहायक-साधर्मिक आढर श्रेष्ठी मिले थे, तो यहाँ कुमारपाल के भव में उदयन मंत्री मिले ! कुमारपाल राजा बने ५० वर्ष की उम्र में ! ५० वर्ष तक उनका जीवन अनेक आपत्तियों से, विपत्तियों से गुजरा था । वह अति निराशा में डूब गये थे । राजा सिद्धराज, कुमारपाल की हत्या करने उतारू हुआ था। भाग्योदय से वह बचता रहा... और अंत में हेमचन्द्रसूरिजी के परिचय में आ गया । आचार्यदेव ने उसको आश्वस्त किया और जिनवाणी सुनाना प्रारंभ किया । राजा बनने के बाद भी, जिनवाणी के माध्यम से आचार्यदेव ने कुमारपाल की द्रव्यात्मक और भावात्मक प्रस्तावना 388888888888856002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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