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________________ इसलिए ममत्व तोड़ने का और समत्व पाने का उपदेश ज्ञानी पुरुष देते हैं । तुम अकेले हो, अकेले जन्मे हो और अकेले मरोगे । जिन पौद्गलिक विषयों पर ममत्व करते हो, आसक्ति बाँधते हो, वे साथ चलनेवाले नहीं है । ममत्व का बोझ तुम्हें नीचे...गहरे पानी में डूबो देगा। तुम नरक में चले जाओगे। असंख्य वर्षों तक दुःख पाओगे । __शास्त्रों में, धर्मग्रंथों में कहा गया है कि जो वासुदेव होते हैं, वे अवश्य नरक में जाते हैं । क्योंकि वे मृत्युपर्यंत परिग्रह का, ममत्व का त्याग नहीं करते हैं ! और सभी बलदेव स्वर्ग अथवा मोक्ष में जाते हैं, ऊपर जाते हैं, क्योंकि वे मृत्यु के पहले परिग्रह का त्याग कर देते हैं ! ममत्व का बोझ कम कर देते हैं अथवा सर्वथा त्याग कर देते हैं । वैसे जो चक्रवर्ती मृत्यु तक परिग्रही बने रहते हैं, वे अवश्य नरक में जाते हैं । जो मृत्यु के पूर्व ममत्व का त्याग करते हैं वे स्वर्ग अथवा मोक्ष में जाते हैं । भरत चक्रवर्ती वगैरह सर्वथा अपरिग्रही बने थे तो मोक्ष में गये । सनत्कुमार चक्रवर्ती ने ममत्व का बोझ कम किया था तो वे तीसरे देवलोक में गये । और सुभूम-ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ने ममत्व-परिग्रह नहीं त्यागा था तो वे नरक में गये ! इसलिए ममत्व छोड़कर, एकत्व की और समत्व की आराधना करें । परभाव : शराब का नशा : ___ जहाँ एकत्व की भावना नहीं रहती है, अनेकत्व की भावना दृढ़ होती है, परभाव की आसक्ति, परद्रव्य का ममत्व रहता है, वहाँ जीव की दशा शराबी जैसी होती रहती है । फिर वह पुरुष साधारण हो या असाधारण ! सामान्य हो या विशिष्ट! युवान हो या वृद्ध । शराबी की तरह वह पतति, विलुठति, जृम्भते! वह गिरता है, टकराता है...लोटता है ! जब लंकापति रावण सीता का अपहरण कर गया था तब श्रीराम जैसे महापरुष की क्या स्थिति बनी थी ? श्रीराम का सीता के प्रति ममत्व था, परभाव का बंधन था ! श्रीराम ने जब कुटिया में सीता को नहीं देखा, वे तत्काल मूञ्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े थे । जब वे होश में आये तब वे जंगल में सीताजी की खोज में भटकने लगे थे। वनदेवता को दीन वचनों से प्रार्थना करने लगे थे - हे वनदेवता, मैं इस वन में सर्वत्र भटका, परंतु मैंने जानकी को नहीं देखा...तुमने देखा हो तो कृपया बतायें । भूत और जंगली क्रूर जनावरों से भरे हुए इस वन में सीता को अकेली छोड़कर मैं लक्ष्मण के पास चला गया...मैं कैसा बुद्धिहीन ? हे प्रिये | २७० शान्त सुधारस : भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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