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________________ देवगति के दुःख : ये तो मनुष्यगति के दुःख बताये, देवगति में भी दुःख होते हैं ! सामान्य रूप से आप लोग यह समझते हैं कि देवलोक में देव-देवी को सुख ही सुख होते हैं ! परंतु यह गलत धारणा है । देवों को भी दुःख होते हैं ! अपने से ज्यादा सुख-संपत्ति, वैभववाले देवों को देखकर, देवों को मानसिक दुःख होता है । बड़े बड़े वैभवशाली देवों को भी जब देवर्द्धिका, देवांगनाओं का वियोग होता है तब दुःख होता है । सारे भौतिक सुख विषयाधीन होते हैं, उनसे जीवों को तृप्ति कैसे होगी ? तृष्णा बढ़ती ही रहती है । प्रश्न : मानसिक दुःख अल्प होता है न ? उत्तर : शारीरिक दुःख से मानसिक दुःख ज्यादा होता है, बहुत तीव्र होता है। मनुष्य के पास बहुत ज्यादा वैषयिक सुख के साधन होने पर भी यदि मानसिक दुःख होता है, तो वह अपने आपको बहुत दुःखी मानता है । मन चिंताग्रस्त होने पर सभी सुखसामग्री दुःखरूप ही लगती है । देवों के सुख, विषयों के अधीन होते हैं, इसलिए वे दुःख के ही कारण होते हैं । वास्तव में सोचा जायं तो अन्य निमित्त से माना गया सुख, सुखाभास ही होता है, भ्रम ही होता है। क्योंकि जिस वस्तु को सुख का कारण माना जाता है, वही वस्तु कालान्तर में दुःख का कारण होती है I इस प्रकार असार और भयानक संसार में कहीं भी सुख नहीं है । सारे रिश्ते फिजूल : वैसे, इस संसार में कोई रिश्ता, नाता, संबंध शाश्वत् नहीं होता है। सारे रिश्ते बदलते रहते हैं । एक जन्म की माता दूसरे जन्म में पुत्री होती है, बहन होती है, या पत्नी भी होती है । पिता मरकर पुत्र होता है, शत्रु होता है, भाई होता है ! पत्नी मरकर शत्रु होती है, पति भी बन सकती है ! 'समरादित्य - महाकथा' में नौ-नौ जन्मों की कथा पढ़ना। रिश्ते-नाते कैसे बदलते हैं... आपको मालुम होगा । अरे, एक ही वर्तमान जीवन में एक मनुष्य के १८ प्रकार के संबंध की कहानी पढ़ने में आती है। मैंने जिस प्रकार वह कहानी पढ़ी है, आपको सुनाता हूँ । अठारह नाते : मथुरा नाम की नगरी थी । उस नगरी में कुबेरसेना नाम की एक वेश्या रहती संसार भावना २१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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