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________________ 1 'इस सूली पर जो पुरुष है, वह मेरा पति है । राजा ने उसके अपराध की शिक्षा दी है। अभी वह मरा नहीं है । मेरी इच्छा मेरे हाथों से उसको भोजन कराने की है । तूं यदि उतनी ऊँचाई पर मुझे चढ़ा दें तो मैं उसको भोजन करा सकूँ । मैंने कहा : ठीक है, तूं मेरे कंधे पर चढ़ जा ।' उसने कहा : 'जब तक मैं उसको भोजन करा न लूँ तब तक तुझे ऊपर नहीं देखने का । मैं लज्जाशील नारी हूँ ।' मैंने कहा : 'ठीक है, मैं ऊपर नहीं देखूँगा । वह औरत मेरे कंधे के ऊपर चढ़ गई। थोड़े समय के बाद मेरे शरीर पर कुछ बूंदे गिरने लगी । अंधेरा था, इसलिए मुझे खयाल नहीं आया कि वे बूंदे किसकी थी । पानी की बूंद समझकर मैंने ऊपर नहीं देखा । परंतु जब ज्यादा बूंदे गिरने लगी... मुझे खून की बाँस आने लगी । मैंने ऊपर देखा... मैं काँपने लगा । वह औरत, उस मृत पुरुष के शरीर का मांस खा रही थी । मैं उसी समय उस औरत को जमीन पर पछाड़कर भागा। परंतु मैं मेरी तलवार लेना भूल गया । वह स्त्री मेरी तलवार लेकर मेरे पीछे दौड़ी। मैं दौड़ता हुआ नगर के दरवाजे में प्रवेश करने जाता हूँ, मेरा एक पैर दरवाजे के बाहर था, उसी समय उस स्त्री ने मेरा एक पैर काट दिया और पैर लेकर वह भाग गई । मुझे अत्यंत वेदना हो रही थी । मैं दरवाजे के भीतर आ गया था । वहाँ पर ही बैठ गया । दरवाजे के भीतर दुर्गरक्षिका देवी का मंदिर था। मैं धीरेधीरे मंदिर में गया और करुण स्वर से देवी के सामने विलाप करने लगा । देवी प्रगट हुई और वात्सल्य से मुझे कहा: वत्स, जो मनुष्य नगर के भीतर होता है उसकी रक्षा मैं कर सकती हूँ। तेरा एक पैर दुर्ग के बाहर रह गया था, इसलिए कट गया । परंतु तू चिंता मत कर । मैं तेरा पैर अच्छा कर देता हूँ ।' देवी ने मेरा पैर अच्छा कर दिया और अदृश्य हो गई। देवी को मैंने वंदना की और मैं मेरे ससुराल पहुँचा । घर बंद था । परंतु भीतर जो वार्तालाप हो रहा था, वह मैं सुनने लगा । मेरी सास और मेरी पत्नी आपस में बात करती थी । मेरी सास बोल रही थी : 'बेटी, आज यह मांस बहुत स्वादिष्ट लगता है, क्या कारण है ?' लड़की बोली : 'माँ, यह मांस तेरे जमाई के पैर का है । इतना कह कर उसने स्मशान में जो घटना बनी थी वह सुनायी और मेरा पैर कैसे काटा, वह भी सुनाया । 1 मंत्री श्वर, मैं तो स्तब्ध हो गया । कैसी क्रूर... भयंकर औरत ? मैं वहाँ से उसी शान्त सुधारस : भाग १ १९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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