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________________ विवशता पर रोना आ गया। मेरी आँखों में से आँसू बहने लगे । मध्याह्न का समय हुआ। एक बड़ा बंदर छाया खोजता हुआ मेरे पास आया। वह मुझे एकटक देखता रहा और भूमि पर गिर पड़ा। जब उसकी मूर्च्छा दूर हुई, वह खड़ा हुआ और जंगल में चला गया । वह थोड़ी देर में ही दो प्रकार की वनस्पति लेकर आया और मेरे शरीर पर वह वनस्पति लगा दी । मेरे घाव भर गये । बाद में वह बंदर जमीन पर कुछ लिखने लगा । उसने लिखा था 'मैं तेरे ही गाँव का सिद्धकर्मा नाम के वैद्य का पुत्र था । परंतु आर्तध्यान में मरकर बंदर हुआ | तुझे देखकर मुझे पूर्वजन्म की स्मृति हो आयी है । पूर्वजन्म के औषधीज्ञान से यह वनस्पति ले आया हूँ और तुझे स्वस्थ किया है। अब तुझे मेरा एक काम करना है । मैंने कहा : 'मैं तेरा काम करूँगा । बंदर ने कहा : 'मेरी बात सुन । एक बलिष्ठ बंदर ने मुझे बंदरयूथ से निकाल दिया है । उसे मारकर, मुझे उस बंदरयूथ का नायक बना दे। मेरे उपकार का बदला इस प्रकार मुझे देना है । मैंने वैसा ही किया । उस बंदर को मारकर, मेरे उपकारी बंदर को नायक बना दिया । पुनः मैं वैर का बदला लेने, पल्लीपति के पास गया । रात्रि के समय उसकी तलवार से उसका वध कर दिया और बेवफा पत्नी को लेकर घर आया । परंतु मेरा मन संसार के प्रति विरक्त बन गया था। मैंने गुरुदेव के पास जाकर चारित्रधर्म का स्वीकार कर लिया । | हे मंत्रीश्वर, इस घटना से मेरे मुँह से 'महाभयम्' शब्द निकल गया था ! अभयकुमार एकाग्रता से सुव्रत मुनिवर की आत्मकथा सुन रहे थे । संसार की भयानकता के विचार में डूब गये थे । उन्होंने मुनिराज को कहा: मुनिराज, आपने चारित्रधर्म का मार्ग लेकर वास्तव में आत्मा को बचा ली है। जीवन को पावन बना दिया है और परलोक को सुखमय कर दिया है !' I अभयकुमार ने मुनिराज को वंदना की और वह अपने स्थान पर गये । धर्मध्यान में लीन बने । धनद मुनिवर : 'अतिभयम्' : रात्रि का तीसरा प्रहर शुरू हो गया था । महामंत्री के कान पर शब्द आया : 'अतिभयम् !' महामंत्री का धर्मध्यान भंग हुआ । उन्होंने उपाश्रय के द्वार में प्रवेश करते मुनिराज को देखा। वे उठकर मुनिराज के पास गये और पूछा : १९२ Jain Education International For Private & Personal Use Only शान्त सुधारस : भाग १ www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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