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________________ निद्राधीन होने का सोचते थे, तभी दूसरी घटना वहाँ घटती है । पत्नी का विश्वासघात : 'महाभयं : महामंत्री ने 'महाभयम्' शब्द सुना। उन्होंने उपाश्रय के द्वार पर देखा । एक मुनिराज द्वार में प्रवेश कर रहे थे, उनके मुँह से यह शब्द निकला था । अभयकुमार खड़े हुए, मुनिराज के पास गये, धीरे से पूछा : है पूज्य, आप 'महाभयम्' क्यों बोले ? आपने यहाँ कोई भय देखा क्या ?' मुनिराज ने कहा : 'मंत्री श्वर, मेरे गृहस्थ जीवन की एक महाभयंकर घटना याद आ गई और सहसा मेरे मुँह से 'महाभयम्' शब्द निकल गया । महामंत्री ने पूछा : कृपावंत, ऐसी कैसी घटना घटी आपके जीवन में ? यदि आपके स्वाध्याय में विघ्न नहीं होता हो तो कहने की कृपा करें ।' मुनीश्वर और मंत्री श्वर, उपाश्रय के एक एकान्त भाग में जाकर बैठे। मुनिराज ने स्वस्थ बनकर अपनी व्यथापूर्ण कथा शुरू की। मैं चंपानगरी में रहता था । मेरा नाम था सुव्रत । मेरे पास अपार सुख-समृद्धि थी । परंतु एक रात्रि में मेरा भाग्यचक्र बदल गया । मेरी समृद्धि ही मेरे लिये दुःखरूप बन गई । डाकुओं ने मेरी हवेली में डाका डाला । मैं हवेली में छूप गया । मेरी पत्नी ने डाकुओं को कहा: 'तुम्हें क्या चाहिए ? कंचन या कामिनी ? यदि तुम्हें स्त्री चाहिए तो मैं तुम्हारे साथ आने को तैयार हूँ ।' मैंने मेरी पत्नी के शब्द सुने । मुझे सत्य नहीं लगा । परंतु सच ही मेरी पत्नी डाकुओं के साथ चली गई । डाकुओं ने मेरी पत्नी पल्लीपति को सौंप दी । पल्लीपति ने उसको अपनी पत्नी बना ली ! डाकुओं के जाने के बाद, मेरे मित्र मेरे घर आये । उनको मालूम हुआ कि 'डाकु मेरी पत्नी को उठाकर ले गये हैं । उन्होंने मुझे आग्रह किया कि मैं उसको मुक्त करा कर ले आऊँ । हालाँकि मेरा मन नहीं मानता था, फिर भी मैं मित्रों के आग्रह से डाकुओं के अड्डे की ओर चल पड़ा। वहाँ मैंने एक वृद्धा की झोंपड़ी देखी । मैं उसकी झोंपड़ी में गया । वृद्धा को बहुत धन देकर संतुष्ट किया । मैंने उसको कहा : पल्लीपति के घर में मेरी पत्नी रहती है, उसके पास जाकर तुम मेरे आगमन के समाचार दो । वृद्धा जाकर आयी और बोली : 'उसने कहा है कि आज रात्रि में तुम उसके घर चले जाना। क्योंकि आज रात्रि में पल्लीपति बाहर जानेवाला है ।' मैंने पूछा : वह कहाँ रहती है ? वृद्धा ने कहा : 'सामने..... १९० Jain Education International For Private & Personal Use Only शान्त सुधारस : भाग १ www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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