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किया। चित्र-संभूत को मालुम हो गया कि उनके पिता नमुचि को मार डालनेवाले हैं। उन्होंने नमुचि को गुप्तमार्ग से भगा दिया ।
इधर नगरी में मदनोत्सव प्रवर्तित हुआ । नगरवासी लोग उद्यानों में जाने लगे । चित्र - संभूत भी गाते-गाते नगर में फिरने लगे । इतना कर्णप्रिय गीत वे गाते थे कि उनके आसपास लोगों की भीड़ लग गई। लोग प्रशंसा करने लगे । परंतु कुछ राजपुरुषों ने जाकर राजा को कहा: 'दो चांडालपुत्रों ने अपनी गीतकला से लोगों को आकर्षित कर लिया है और नगर को अपवित्र कर दिया है !'
राजा ने उन दो चांडालपुत्रों को नगर के बाहर निकाल देने की कोतवाल को आज्ञा दे दी। परंतु कुछ दिनों के बाद चित्र और संभूत नकाब धारण कर पुनः नगर में घुमने लगे । गाने लगे । हजारों युवक उनकी गानकला से आकर्षित हुए। ये दो कौन गायक हैं ?' जिज्ञासा से युवकों ने उनका नकाब खींच लिया ! 'अरे, ये तो वे ही चांडालपुत्र हैं !' लोग उनको मारने लगे ।
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चित्र - संभूत नगर से बाहर चले गये । 'गंभीर' नाम के उद्यान में गये । एक वृक्ष के नीचे बैठकर वे सोचने लगे : 'अपनी हीन जाति होने की वजह से अपनी कला, अपना रूप, अपना कौशल्य वगैरह धिक्कारपात्र बन गये हैं । ऐसी धिक्कारपात्र अवस्था में जीने की बजाय मर जाना अच्छा है !' आत्महत्या करने की इच्छा से दोनों भाई दक्षिण दिशा में चले । चलते-चलते एक दिन वे दोनों भाई एक बहुत ऊँचे पहाड़ के पास पहुँचे। दोनों ने सोचा: 'इस पहाड़ के शिखर पर चढ़कर, वहाँ से गहरी खाई में गिरकर मर जायं। वे पहाड़ पर चढ़ने लगे ।
शिखर पर उन्होंने एक महामुनि को देखा। महामुनि कायोत्सर्ग ध्यान में खड़े थे । मुनिराज के दर्शन करने से चित्र-संभूत के हृदय में आनंद हुआ। वे अपने दुःख - संताप भूल गये । उनकी आँखों में से हर्ष के आँसु बहने लगे। वे मुनिराज के चरणों में गिर पड़े। मुनि ने अपना ध्यान पूर्ण किया और पूछा : 'तुम कौन हो ? और यहाँ क्यों आये हो ?' चित्र-संभूत ने अपनी सारी कथा-व्यथा सुना दी । मुनिराज ने कहा :
'महानुभाव, आत्महत्या करने से तुम्हारे शरीर का नाश होगा, परंतु तुम्हारे पापकर्मों का नाश नहीं होगा । जब तक आत्मा के साथ पापकर्म लगे रहेंगे, तब तक दुःखों का अन्त आनेवाला नहीं है। दूसरे जन्म में और ज्यादा दुःख भोगने होंगे। फिर भी तुम्हें शरीर का त्याग करना ही है, तो तपश्चर्या करके शरीर का त्याग करो । तपश्चर्या से स्वर्ग और मोक्ष के सुख मिलते हैं। घोर - वीर और
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शान्त सुधारस : भाग १
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