SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हे महाराजा, मेरे छोटे और बड़े भाई मेरे प्रति अत्यंत अनुरागवाले थे, वे भी मुझे रोगमुक्त – दुःखमुक्त नहीं कर पाये, मेरी यह चौथी अनाथता थी। __ हे मगधाधिपति, मेरी छोटी-बड़ी बहनें, जो मेरा दर्द देखकर रो रही थी, वे भी मुझे मेरी तीव्र वेदना से मुक्त नहीं कर पायी, यह मेरी पाँचवी अनाथता थी। __हे श्रेणिकराजा, मेरी रूपवती और पतिव्रता पत्नी, आँसु बहाती हुई मेरी छाती को भिगो रही थी, वह भी मेरा दुःख दूर नहीं कर सकी थी, यह मेरी छट्ठी अनाथता थी । मेरी पत्नी ने भोजन, स्नान, विलेपन, जलपान वगैरह त्याग दिया था । मेरे पास ही खड़ी रहती थी । मुझे छोड़कर एक क्षण भी दूर नहीं जाती थी...फिर भी मैं वेदनामुक्त नहीं हुआ, यह मेरी कैसी करुण अशरणता थी ? राजा श्रेणिक दत्तचित्त होकर अनाथीमुनि का वृत्तांत सुन रहे थे । उनको जीव की अनाथता का, अशरणता का ख्याल आ रहा था। उसने पूछा : हे मुनिवर, जब कोई औषध काम नहीं आया, तब आपके पिता ने क्या किया? आप रोगमुक्त कैसे हुए ? आज, बस इतना ही । | १६० शान्त सुधारस : भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy