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सुन लो, इससे शुद्ध आत्मा का अच्छा परिचय होगा । * अनन्त सुखमय
* संकल्प-विकल्पों से मुक्त, * ज्ञानामृत से परिपूर्ण * स्वभावलीन * अनन्त शक्तिशाली
* निराकार * निर्विकार
* निरामय * निराहार
* बंधनमुक्त * असंग
* प्रसन्नता से परिपूर्ण * परमानन्द से पूर्ण
* राग-देषरहित * शुद्ध चैतन्य-स्वरूप * सिद्धात्मा-सदृश
* आनन्दरूप ऐसी आत्मा शरीर में है ! ___ ऐसी आत्मा अपने शरीर में रही हुई है ! परंतु ऐसी आत्मा को ध्यानहीनाः न पश्यति । जो मनुष्य ध्यानी नहीं है, वह नहीं देख सकता, जैसे जन्म से अंध व्यक्ति सूर्य को नहीं देख सकता । ध्यानी ऐसे योगीपुरुष ही देख सकते हैं ।
ऐसा ध्यान करना चाहिए, जिससे मन विलीन हो जायं और तत्क्षण शुद्ध आनन्दमय आत्मा का दर्शन हो जायं ।
तद्ध्यानं क्रियते भव्यं मनो येन विलीयते ।' शरीर के भीतर ही देखना है ! शरीर में व्याप्त होकर रही हुई आत्मा को देखना है । जिस प्रकार पाषाणों में सोना होता है, दूध में घी रहा हुआ है और तिल में तैल होता है, वैसे देह में आत्मा रही हुई है । जिस प्रकार लकड़ी में अग्नि शक्तिरूप से होती है वैसे यह आत्मा, स्वभाव से निर्मल, शरीर में रही हुई है । कहा गया है
पाषाणेषु यथा हेम, दुग्धमध्ये यथा घृतं ।। तिलमध्ये यथा तैलं, देहमध्ये तथा शिवः ॥ काष्ठमध्ये यथा वह्निः शक्तिरूपेण तिष्ठति ।
अयमात्मा स्वभावेन देहे तिष्ठति निर्मलः ॥ योगी ही आत्मदर्शन करते हैं :
शरीर का ममत्व, मोह तोड़ने के लिए जैसे शरीर में मांस, मज्जा, रूधिर, | अनित्य भावना
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