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________________ दि सीरीझना प्रथम पुष्प मंगलाचरणरूप प्रकट थयेल छे. जेना संपादक पूज्यपाद आचार्य श्री विजयवल्लभसूरीश्वरजीना प्रशिष्य पंग्यासजी महाराज श्री उमंगविजयजी गणिना शिष्यरत्न मुनिराज श्री चरणविजयजी महाराज छे, के जेअश्रा आवती साल प्रातःस्मरणीय न्यायांभोनिधि श्री विजयानंदसूरीश्वरजी ( आत्मारामजी ) महारांजनी गुरुभक्ति निमित्ते शताब्दि उजववा माटे अपूर्व प्रयत्न सेवी रह्या छे, ते शताब्दिना संस्मरण निमित्ते ज आ शताब्दि सीरीझनी योजना आचार्य श्री विजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराजनी आज्ञा अनं कृपाथी ज करवानं योग्य कार्य हाथ धरी, प्रकट करवानुं कार्य आ सभाने सुप्रत करेल छे. केवल गूजराती भाषाना जाणकार भावुको आ वीतराग प्रभुमी स्तुतिनो अमूल्य लाभ भक्तिरसद्वारा लइ शके ते माटे आ स्तोत्रनुं मूल साथै सरल गुजराती भाषांतर करावी सभाए या ग्रंथ शताब्दिना त्रीजा पुष्प तरीके प्रसिद्ध करेल छे उंचा कोचली ब्ल्युपेपर उपर सुंदर शास्त्री टाइपथी सुशोभित बाइण्डींगथी अलंकृत करेल छे. सर्व कोइ लाभ लइ शके माटे मात्र चार आना किंमत राखवामां आवेल छे. आ ग्रंथमां येवला निवासी धर्मात्मा व्हेनो श्रीमती चंचळ व्हेन, मोतीव्हेन अने बबुव्हेने आर्थिक सहाय आपल छे जेथी तेओने धन्यवाद घंट छे. आत्मानंद भवन वी. सं. २४६१ आ. सं. ४० गांधी वल्लभदास त्रिभुवनदास. सं. १९९१ मा ज्येष्ठ शुद ८ ( गुरु जयंती दिन ) Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org
SR No.003660
Book TitleVitrag Mahadev Stotra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1935
Total Pages106
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size3 MB
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