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________________ ( ५० ) अचण्डवीरवतिना, शमिना शमवर्तिना । त्वया काममकुट्यन्त, कुटिलाः कर्मकण्टकाः ॥३॥ क्रोध विना ज वीरव्रतवाळा ( सुभटनी वृत्तिवाळा ), शमतावाळा अने शमतामा वर्तनारा आपे कुटिल कर्मरूपी कांटाओना अत्यंत नाश को के. ३. अभवाय महेशायाऽगदाय नरकच्छिदे । अराजसाय ब्रह्मणे, कस्मैचिद्भवते नमः ॥४॥ भव (महादेव) रहित महेश्वररूप, गदा रहित नरकच्छिद (विष्णु) रूप अने रजोगुण रहित ब्रह्मारूप एवा काइ (न कही शकाय तेवा) आपने नमस्कार हो. ( अहीं कहेला छए शब्दो परस्पर विरुद्ध छे एटले के जे भव ( महादेव ) न हाय ते महेश्वर पण न होय, जे गदा रहित होय ते विष्णु न होय अने जे रजोगुण रहित होय ते ब्रह्मा न होय केमके भव ज महेश्वर छे, विष्णु गदो सहित ज छे अने ब्रह्मा रजोगुण सहित ज छे. आ विरोधने दूर करवा माटे आवो अर्थ करवो-श्री वीतराग प्रभु अभव एटले संसार रहित छे, महेश एटले तीर्थकर संबंधी परम ऐश्वर्य सहित छ; अगद एटले राग रहित छे, नरकच्छिद एटले धर्मतीर्थनो प्रवृत्ति करJain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org
SR No.003660
Book TitleVitrag Mahadev Stotra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1935
Total Pages106
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size3 MB
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