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७१६ राय धनपतसिंघ बहापुरका जैनागमसंग्रह नाग तेतालीस (४३) -मा.
जो पावगं जलिमवक्कमिका, श्रासीविसं वा विदु कोवका ॥ जो वा विसं खाय जीविाही, एसोवमासायण्या गुरूणं ॥ ६ ॥ साहु से पावय नो डहिका, असीविसो वा कुवि न नरके ॥ सिा विसं हालहलं न मारे, ना वि मुरको गुरुहीलगाए ॥ ७ ॥ जो पai सिरसा जित्तुमिचे, सुत्तं व सीहं पडिबोहरा || जो वा दए सत्तिग्गे पहारं, एसोवमासायण्या गुरूणं ॥ ८ ॥ सियासी से गिरिं पि जिंदे, सिच्छा हु सीहो कुवि न जरके ॥ सिया न जिंदिजा व सत्तिग्गं, न वि मुरको गुरुहीलगाए ॥ ए॥ रिपाया पुण अप्पसन्ना, बोहियासायण नत्थि मुरको ॥ तम्हाणाबाह सुहाजिकखी, गुरुप्पसायानिमुहो रमिता ॥ १० ॥ जाहाहिग्गी जलणं नमसे, नाणादुईमंतपयानिमित्तं ॥ एवायरि जवचिछा, अशंतनाणोवगर्न वि संतो ॥ ११ ॥ जस्संतिए धम्मपयाइ सिरके, तस्संतिए वेश्यं परंजे ॥ सक्कारए सिरसा पंजलीन, कायग्गिरा जो मासा का निच्चं ॥ १२ ॥ ला दया संजमबंजचेरं, कल्लाएजागिस्स विसो दिवाणं ॥ जे मे गुरू सययमणुसासयंति, तेहिं गुरू सययं पूछायामि ॥ १३ ॥ जहा सिंते तव चिमाली, पचास केवलजारहं तु ॥ एवारि सुसीलबुद्धिए, विरायइ सुरमने व दो ॥ १४ ॥ जहा ससी कोमुइजोगजुत्तो, नखत्ततारागणपरिवुडप्पा ॥
सोहई विमले प्रमुक्के, एवं गणी सोहइ जिस्कुम ॥ १५ ॥ महागरा रिया महेसी, समाहिजोगे सुासीलबुद्धिए ॥ संपाविकामे तराई, राहए तोसइ धम्मकामी ॥ १६ ॥ सुच्चा मेहावि सुजा सिचाई, सुस्सूसए आयरिअप्पमत्तो ॥ राहता गुणेोगे से पावइ सिद्धिमणुत्तरं ॥ तिबेमि ॥ १७ ॥ ॥ इति विषयसमाहीए पढमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ॥ अथ विनयस माध्यध्ययने द्वितीय उद्देशः ॥
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मूला खंधप्पजवो घुमस्स, खंधान पत्था समुविंति साहा ॥ साहसाहा विरुति पत्ता, तर्ज सि पुष्पं फलं रसो का ॥ १ ॥ एवं धम्मस्स वि, मूलं परमो से मुरको || जे कित्तिं सु सिग्धं, नीसेसं चानिगन ॥ २ ॥ जे छा चंडे मिए थळे, दुबाई नियडी सढे ॥ बुझइ विप्पो, कहं सो गयं जहा ॥ ३ ॥ विण्यंमि जो नवाएं, चोइ कुप्पई नरो ॥ दिवं सो सिरिमितिं, दंडे पडिसेहए ॥ ४ ॥ तव विप्पा, जववष्ना हया गया ॥ दीसंति दमेहंता, आनिगमुवा ॥ ५ ॥ तव सुविणीअप्पा, जववना हया गया । दीसंति सुहमेहंता, इ िपत्ता महायसा || ६ || तव विप्पा, लोगंमि नरनारी ॥ दीसंति हमेहंता, बाया ते विगलिंदिया ॥ ७ ॥ दंडसत्यपरितन्ना, असनवयहि छ । कलुणा विवन्ननंदा, खुप्पिवासपरिग्गया ॥ ८ ॥ तव सुविधा, लोगंसि नरनारी ॥ दीसंति सुहमेहता, इट्ठि पत्ता महायसा ॥ ए ॥
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