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________________ ( १७ ) चार प्रसिद्ध संघ इन सब संज्ञाओं में नन्दि, सेन, देव और सिंह संज्ञाओंसे हम विशेष परिचित हैं, क्योंकि भट्टारक इन्द्रनन्दि आदि पिछले साहित्यने * दिगम्बर-सम्प्रदाय के ये ही चार संघ अर्हद्बल्याचार्यद्वारा स्थापित बतलाए हैं— सिंहसंघो नन्दिसंघः सेनसंघो महाप्रभः । देवसंघ इति स्पष्टं स्थानस्थितिविशेषतः || ७ || नीतिसार परन्तु अन्य वीर, अपराजित, भद्र, गुणधर, गुप्त और चन्द्र नामके संघोंसे हम सर्वथा अपरिचित हैं । हाँ, कुछ ऐसे आचार्यों के नाम हमें अवश्य मालूम हैं जिनके नामोंके अन्तमें इनमें से गुप्त, वीर, भद्र और चन्द्र संज्ञायें जुड़ी हुई पाई जाती हैं । जैसे सर्वगुप्त, श्रुतप्त, शिवगुप्त, मित्रवीर, समन्तभद्र, गुणभद्र, श्रीचन्द्र, विमलचन्द्र, कनकचन्द्र आदि । परन्तु अपराजित और * देखो श्रवणबेल्गोलका १०५ वें नम्बरका शक संवत १३२० का शिलालेख । इसमें अहल्याचार्यद्वारा स्थापित सिंह-सेन - देव - नन्दिसंघों का उल्लेख है । १ भगवती आराधना कर्त्ता शिवार्यके गुरु । २-३-४ देखो हरिवंशपुराणके ६६ वें सर्गमें लोहाचार्यकी परम्परा के प्रारंभके आचार्यों के नाम | २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003657
Book TitleHarivanshpuranam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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