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________________ २५ ईसाकी मवीं और 8 वीं शताब्दीका मध्यकाल - ई० ७७० से ८६० सिद्ध होता है । प्रस्तावना बाधकोंका निराकरण इस समय के स्वीकार करनेमें दो बाधक प्रमाण उपस्थित किये जा सकते हैं और वे ये हैं १. क्षत्रचूडामणि और गद्यचिन्तामणि में जीवन्धरस्वामीका चरित निबद्ध है जो गुणभद्राचार्य के उत्तरपुराण' (शक सं० ७७०, ई० ८४८) गत जीवन्धरचरितसे लिया गया है । इसका संकेत भी गद्यचिन्तामणिके निम्न पद्य में मिलता है निःसारभूतमपि बन्धनतन्तुजात ं, मूर्ध्ना जनो वहति हि प्रसवानुषङ्गात् । जीवन्धरप्रभव पुण्य पुराणयोगा द्वाक्य ं ममाऽप्युभयलोक हितप्रदायि || ६ || अतएव वादीभसिंह गुणभद्राचार्य से पीछेके हैं । २. सुप्रसिद्ध धारानरेश भोजकी झूठी मृत्युके शोकपर उनके समकालीन सभाकवि कालिदास, जिन्हें परिमल अथवा दूसरे कालिदास कहा जाता है, द्वारा कहा गया निम्न श्लोक प्रसिद्ध हैश्रद्य धारा निराधारा निरालम्बा सरस्वती । पण्डिता खण्डिताः सर्वे भोजराजे दिवंगते ॥ - और इसी श्लोक के पूर्वार्धको छाया संत्यन्धर महाराजके शोक के प्रसङ्गमें कही गई गद्यचिन्तामणिकी निम्न गद्यमें पाई जाती है Jain Education International १ प्रेमीजीने जो इसे 'शक सं०७०५ (वि० सं ८४० ) की रचना' बतलाई है (देखो, जैनसा० और इति० पृ. ४८१ ) वह प्रेसादिकी गलती जान पड़ती है; क्योंकि उन्होंने उसे अन्यत्र शक सं. ७७०, ई. ८४८के लगभगकी रचना सिद्ध की है, देखो वही पृ० ५१४ | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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