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________________ प्रस्तावना इसमें स्याद्वादका प्ररूपण और बौद्धदर्शनके अपोहादिका खण्डन होना चाहिए । अन्य ग्रन्थकारों और उनके ग्रन्थवाक्योंका उल्लेख ग्रन्थकारने इस रचना में अन्य ग्रन्थकारों और उनके ग्रन्थवाक्योंका भी उल्लेख किया है । प्रसिद्ध मीमांसक विद्वान् कुमारिल भट्ट और प्रभाकरका नामोल्लेख करके उनके अभिमत भावना और नियोगरूप वेदवाक्याथका निम्न प्रकार खण्डन किया है नियोग-भावनारूपं भिन्नमर्थद्वयं तथा । भट्ट-प्रभाकराभ्यां हि वेदार्थत्वेन निश्चितम् ॥६- १६॥ इसी तरह अन्य तीन जगहोंपर कुमारिल भट्टके मीमांसाश्लोकवात्तिकसे 'वातिक' नामसे अथवा उसके बिना नामसे भी तीन कारिकाएं उद्धृत करके समालोचित हुई हैं और जिन्हें ग्रन्थका अङ्ग बना लिया गया है । वे कारिकाएं ये हैं(क) 'यद्वेदाध्ययनं सर्व तदध्ययनपूर्व कम् तदध्ययनवाच्यत्वादधुनेव भवेदिति ॥ [ मी० श्लो, अ, ७ का ३५५ ] इत्यस्मादनुमानात्स्याद्वेदस्यापीरुषेयता | १०-३७ । (ख) 'स्वत: सर्वप्रमाणानां प्रामाण्यमिति गम्यताम् । न हि स्ततोsसती शक्तिः कतु मन्येन शक्यते ॥' - [मी० श्लो० सू० २ का ४७ ] -१-११ । इति वार्तिकसद्भावात्""" (ग) 'शब्दे दोषोद्भवस्ता वद्ववत्र्यधीन इति स्थिति: । तदभावः क्वचित्तावद् गुणघद्वक्तृकत्वतः ॥ Jain Education International - [मी० श्लो०सू० २ का ६२] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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