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________________ प्रस्तावना प्रकरणमें २३ कारिकाएँ हैं। १०. वेदपौरुषेयत्वसिद्धि--दशवां प्रकरण वेदपौरुषे. यत्वसिद्धि है। इसमें वेदको सयुक्तिक पौरुषेय सिद्ध किया गया है और उसकी अपौरुषेय मान्यताको मार्मिक मीमांसा की गई है। यह प्रकरण ३६ कारिकाओं में समाप्त है। ११. परतः प्रामाण्यसिद्धि-ग्यारहवाँ प्रकरण परतः प्रामाण्यसिद्धि है। इसमें मीमांसकोंके स्वतःप्रामाण्य मतकी कुमारिलके मीमांसाश्लोकचार्तिक ग्रन्थके उद्धरणपूर्वक कड़ी आलोचना करते हुए प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द (आगम) प्रमाणों में गुणकृत प्रामाण्य सिद्ध किया गया है। इस प्रकरणमें २८ कारिकाएँ हैं। १२. अभावप्रमाणदूषणसिद्धि-बारहवां प्रकरण अभाचप्रमाणदृषणसिद्धि है । इसमें सर्वज्ञका अभाव बतलानेके लिये भाट्टोद्वारा प्रस्तुत अभावप्रमाणमें दूषण प्रदर्शित किये गये हैं और उसकी अतिरिक्त प्रमाणताका निराकरण किया गया है । इसमें ५६ कारिकाएं निबद्ध हैं। १३. तकप्रामाण्यसिद्धि- तेरहवां प्रकरण तर्कप्रामामाण्यसिद्धि है। इसमें अविनाभावरूप व्याप्तिका निश्चय करानेवाले तर्कको प्रमाण सिद्ध किया गया है और यह बतलाया गया है कि प्रत्यक्षादि दूसरे प्रमाणोंसे अविनाभावका ग्रहण नहीं हो सकता । इसमें २१ कारिकाए हैं। १४........." चौदहवां प्रकरण अधूरा है और इसलिये इस का अन्तिम समाप्तिपुष्पिकावाक्य उपलब्ध न होनेसे यह ज्ञात नहीं होता कि इसका नाम क्या है ? इसमें प्रधानतया वैशेषिकके गुण-गुणीभेदादि और समवायादिकी समालोचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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