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________________ स्याद्वादसिद्धि कौन धारण करे ? बुद्धके समयमें ६ परिव्राजक थे। जिनके संघ थे और जिनकी तीर्थकरके रूपमें प्रसिद्धि थी। सबका अपना तत्त्वज्ञान था। पूर्णकश्यप अक्रियावादी, मक्खलिगोसाल दैववादी, अजितकेशकम्बल जड़वादी, प्रQधकात्यायन अकृततावादी, और संजय वेलहिषुत्त अनिश्चयवादी थे। वेद और उपनिषद् के भी आत्मा, परलोक आदिके सम्बन्धमें अपने विविध मतवाद थे। फिर श्रमणसंघमें दीक्षित होने वाले अनेक भिक्षु उसी औपनिषद् तत्त्वज्ञानके प्रतिनिधि वैदिक वर्गसे भी आये थे। अतः जब तक उनकी जिज्ञासा तृप्त नहीं होगी तब तक वे कैसे अपने पुराने साथियोंके सन्मुख उन्नतशिर होकर अपने नये धर्म धारण की उपयोगिता सिद्ध कर सकेंगे ? अतः व्यावहारिक दृष्टिसे भी इनके स्वरूपका निरूपण करना उचित ही था। तीरसे घायल व्यक्तिका तत्काल तीर निकालना इसलिये प्रथम कर्तव्य है कि उसका असर सीधा शरीर और मनपर हो रहा था। यदि वह विषैला तीर तत्काल नहीं निकाला जाता तो उसकी मृत्यु हो सकती है। पर दीक्षा लेनेके समय तो प्राणोंका अटकाव नहीं है। जब एक तरफ यह घोषणा है__“परीक्ष्या भिक्षवो ग्राह्य मद्वचो नत्वादरात्" अर्थात् भिक्षुओ, मेरे वचनोंको अच्छी तरह परीक्षा करके ही ग्रहण करना, मात्र मुझमें आदर होनेके कारण नहीं ।" तो दूसरी ओर मुद्दे के प्रश्नोंको अव्याकृत रखकर और उन्हें मात्र श्रद्धासे अव्याकृत रूपमे ही ग्रहण करनेकी बात कहना सुसंगत तो नहीं मालूम होता। महावीरकी मानस अहिंसा भगवान् महावीरने यह अच्छी तरह समझा कि जब तक बुनियादी तत्त्वोंका वस्तुस्थितिके आधारसे यथार्थ निरूपण नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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