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________________ ง नि ” एवं एमणे पोतेंज लख्युं बे. दीपिका पण घणी सरल सुरस, धने पदना य थायोग्य अर्थयुक्त अतिशय मनोहर बे. एनी शैली एवी बांधीले के जेने थोडुं घणुं सं स्तनुं ज्ञान होय तेने पण सुगमताथी समज पडे ने एवी सरलरचनाने माटें ते वा जनो, ए पंमितनो अत्यंत थानार माने बे. या ग्रंथनो बालावबोध श्री पार्श्वचंद सूरियें करेलो बे. या वात, बीजा श्रुतस्कंध ना अंतमां प्रगट करेली बे. ए बालावबोध टीका उपरथी कीधेलो बे. केमके दीपिका करनार करतां बालावबोध करनारनी उत्पत्ति पूर्वे बे, तो पण ज्यारें ते मारा वांचवामां घाव्यो त्यारें ते एटलो तो अस्तव्यस्त देखायो के तेने सुधारवानी मारी हिम्मत चाली नहीं. तथापि ए कार्य अवश्य थवुंज जोइयें एवं जाणी में मारी अल्पमत्यनुसार श्रम लइने सुधारो बे. हवे सूत्ररूप कल्पवृनो जे जन याश्रय ग्रहण करें बे, ते निज नावानुसार फल पामे बे. पण तेने खर्चे ए वृक्ष उपर खारोहण करवा माटें पूर्वाचार्योएं निश्रे लियो करेली बे; जेम के टीका, जाप्य, निर्युक्ति, दीपिका, चूर्णी तथा बालावबोध प्रमुख. एमांथी वली टीकाकर्त्तायें टीकामांहेज निर्युक्तिनी गाथा लखीने तेनी पण टीका करेली के तेथी निर्युक्तिनो समावेश टीकामां करेलो बे तथा दीपिका ने बा लावबोध रूप एवी चार नीली जूदा जूदा चार प्राचार्योनी करेली या सूयगडां गसूत्ररूप कल्पवृक्षने लगाडी बे तेने उपयोगमां लइ उपर कथं एवं जे घा सूयग डांग सूत्ररूपकल्पवृक्ष, तेनां फल ग्रहण करवा माटें जविक जनोएं अत्यानंद पूर्वक तत्पर यतुं, ए मारी सविनय प्रार्थना बे ए सूत्रमां सर्व जगत्ने प्रमोद उपजावनारी श्री वीतरागनी वाणी बे. ते केवी बे तोके जव रूप वेलनी कृपाणी, संसार रूप समुथी तारवा वाली, महामोहरूप अंधकार नो नाश करवाने दिनकरना किरणो जेवी प्रकाश वाली, क्रोधरूप दावानलनो उपशम करनारी, मुक्तिना मार्गने दर्शावनारी, कलिमलनो प्रलय करनारी, मिथ्यात्वने बेदन कर नारी, त्रिभुवननुं पालन करनारी, मन्मथनो रोध करनारी, अमृतरसनुं यास्वादन करावनारी अने हृदयने अत्याल्हाद करनारी एव अनेक विशेषणोपयुक्त एवी जे श्री जिनवाणी ते सर्व सनोनें मान्य थाउ. कदापि निवड कर्मनी शृंखलायें प्रतिबद्ध थयेला एवा नव्य पुर्नव्यने बोध कर वा माटें ए वाणी समर्थ नथी यती तो पण ए वाणीनुं असामर्थ्य समजवुं नहीं. her सूर्यना किरणो जेम घुड पक्षीना नेत्रने प्रकाश करी शकतां नथी तो पण ते जगत्मां निंदानां याधिष्ठान थतां नयी. वली जलनी वृष्टि करनारो मेघ जो प Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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