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________________ gug द्वितीये सूत्रकृतांगे द्वितीय श्रुतस्कंधे द्वितीयाध्ययनं. चेहिं बारसहि किरियाघादि वट्टमाणा जीवा पोसिसि पोबुकिं सु पोमुचिसु पोपरिणिवासु जाव गोसव डुरकाणं अंतरेसुवा पो करेंतिवा गोकरिस्संतिवा ॥ ८४ ॥ अर्थ - ए पूर्वोक्त बार क्रियाना स्थानकने विषे वर्त्तता एवाजे जीव, ते कोइ प्रतीत का सिधा नथी, बुज्या नथी, कर्म थकी मूकाणा नथी, निवृत्या नथी, यावत् सर्वः नोत पण कोइयें अतीत कालें कयो नथी, वर्तमान कालें करता नथी, घाग मिक कालें पण करशे नही. कारणके, ए बार क्रियाना स्थानक जे बे, ते धर्मप दने मलताज बे ॥ ८४ ॥ || दीपिका-थोपसंहरति । (इच्चे ते हिंति ) इत्येतेषु द्वादशसु क्रियास्थानेषु धर्म पक्षो Sanार्यते । ततएतेषुवर्तमानाजीवान सिद्धान सिध्यंति न सेत्स्यंति न मुक्तान मुच्यंते मो दयं न बुझन बुध्यते न जोत्स्यंते न सर्वदुःखानामंतं चक्रुर्न कुवैति न करिष्यति ॥ ८४ ॥ ॥ टीका - नमितानि क्रियास्थानाति सांप्रतमुपसं जिघृक्कुरेतदेव पूर्वोक्तं समासेन विनपि राह (च्चे हिंइत्यादि ) इत्येतेषु द्वादशसु क्रियास्थानेष्वधर्मपकोऽनुपशमरूपः समव तार्यते न एतेषु वर्तमानाजीवाद्यतीते काले सिद्धान वर्तमाने सिध्यंति न नविष्यंति सेत्स्यं ति तथा न बुबुधिरे न बुध्यंते नच जोत्स्यंते तथा न मुमुचुर्न मुंचति नच मोक्ष्यंते तथा न नि वृत्ता न निर्वर्त्यते नच निर्वास्यंति तथा न दुःखानामंतं ययुर्न पुनर्यौति नच यास्यतीति ॥ ८४ एयंसि चैव तेरसमे किरियाघाणे वहमाणा जीवा सिशिंस बुझिस मुि सुपरिणिवासु जाव सबका अंत करेसुवा करंति करिस्संतिवा एवं से निरक व्यायही प्रायदिते प्रायगत्ते यायजोगे यायपरक्कमे प्रायर किए प्रयाशुकंप यायनिप्फेडए यायाणमेवपडिसा दरेका सि तबेमि ॥ ८५ ॥ इति बीय सुयखंधस्स किरिया घानामवीयमयसम्मत्तं ॥ पर्य - ए पूर्वेकयुंजे निवें तेरमुं क्रिया स्थानक तेने विषे वर्त्तता एवा जे जीव, जीवती का सिधा तत्वमार्गने बुज्या, या कर्म थकी मूकाणा. परिनिवृत्त शी जीनूत थया, यावत् सर्व दुःखनो अतीत कालें अंत कीधो, वर्तमान का अंत करे बे, घने प्रागमिक का अंत करशे, एम ते साधु चारित्रि बार क्रिया स्थानकनो वर्ज नार मोक्षार्थी, यात्मार्थी, श्रात्मानं हित चिंतवनार, यात्मानो गोपवनार, मनादिक Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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