SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 606
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५७६ द्वितीये सूत्रकृतांगे द्वितीय श्रुतस्कंधे प्रथमाध्ययनं . णो खलु एयं पनमवरपोंमरीयं एवं नन्निरकेयवं जहा णं एते पुरिसा मन्ने व्यहमं सि पुरिसे खेयन्ने जाव मग्गस्सगतिपरक्कम प्रमेयं पठमवरपोंमरीयं नन्नि किस्सामित्ति कहु इतिवच्चा से पुरिसे तं पुरकरिपिं जावजावंचणं निक्कमे तावताचां महंते नदए महंते सेए जाव सिन्ने चनचे पुरिसजाए ॥ ॥ अर्थ - ( ग्रहावरे के ० ) अथ हवे प्रथम पुरुष अनंततर ( दोच्चे पुरिसजाए के० ) बीजो पुरुष जात कहेबे (यह पुरि सेके०) यथ हवे ए बीजो पुरुष ( दरिका दिसा ० गम्म के० ) दक्षिण दिशा यकीयाव्यो ( तंपुरकरि पिंके० ) ते पुष्करणीने विषे (ती से पुरकरिणीतीरे हिचा के० ) ते पुष्करणीने कांठे उनो रहने (तंमहंएगंपनमवर पोंमरी के०) ते महोटो प्रधान पोंमरीक कमलने ( पासंति के ० ) दीगे ते कमल केवोले तो केहि पासादीयं जावपडिरूवं ) इत्यादिक पूर्ववत् शोनायें करी सहित बे (तंच ho ) त्यां ते पुरुषे ( एबके० ) अंहीया ( एगंपुरिसजातंपासंतिके० ) एक पुरुष जा तदी (संपही तीरेके०) ते पुरुष वावडीना काठाथी नष्ट ( पचमवरपोंमरीयंके० ) प्रधान पुंरीक कमलने ( पत्तेके० ) अण पाम्यो थको ( पोहच्चाएके० ) वावडीनो बीजो कांठो पायो ( पोपाराएके ० ) कमल उद्धरवाने पण असमर्थ (अंतरापोरक रिपीए) पुष्करणीने विचालें ( सेयं सिके० ) कादवमांहे ( लिसने के ० ) खुतोबे (तए सेपुर के ० ) वार पडी ते पुरुष (तंपुरिसंके०) ते कादवमां खुचेना पुरुष प्रत्ये (ए वयासी० ) एम कहेवा लागो के (होमे पुरिसेके० ) अहो हे पुरुष खेयने कुसने पंमिए वियत्ते प्रमेहावी बाजे गोमग्गडे गोमग्गविक गोमग्गस्स गति परक्कम ए नव पदनुं अर्थ सुजन (जन्नएस पुरिसेके ० ) जे कारणे ए पुरुष पोता नात्माने (हंखेने के० ) हुं खेदशबुं ( अहं कुसने के ० ) ढुंकुसलढुं ( जावपलम वरपोंमरीयं न नि रिकस्सामिके ० ) इत्यादिक जाणतो यावत् प्रधान पुंमरीक कमल ढुं न दरीश एवा नावे यहीं श्राव्यो परंतु (लोखलुएयंपनमवरपोंमरीयं के०) निधें थकी पुं मरीक कमल श्री शक्यो नथी घने कादवमांज खूतोबे ( एवं न्निरकेयवं जहाणंएस पुरि सेमने के०) जेम तेपुरुष पोताने महोटो माह्यो मानीने कमल उधरवा गयो तेज विधिये ए बीजो पुरुष पण पोताने माने ॥ ७ ॥ (हमंसिपुरिसे के ० ) हुं पुरुष खेयने कुसले पंकिए वियते मेहावी बाले मग्गडे मग्गविक मग्गस्सगतिपरिक्कम इत्यादिक पोतामां मा ह्या पण मानतो ( श्रहमेयंके०) हुं ए (पचमवर पोंमरीयंचन्निरिकस्सा मित्तिके ० ) प्रधान पुं मरीक कमलने उदरीश ( कटुके० ) एमकरी ( इतिवच्चा के० ) एवं कदीने ( सेपुरिसे Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy