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________________ ead तथा इस्सम कालरूप रात्रीने विषे तो दीपक समानबे बीजां चार प्रकारनां जे ज्ञान बे तेनुं पण कारण नूत श्रुतज्ञानज े. परमेश्वरें कयुं बेके श्रुतज्ञान संव्यवहा रक बे. उद्देश, समुद्देश, खाज्ञा इत्यादि व्यवहारनो लान श्रुतज्ञानथी याय बे. वली स्व. स्वरूपने परस्वरूप समजाववाने श्रुत ज्ञानज समर्थ बे. बीजां केवल ज्ञानादिक चारे ज्ञान की जाणेला पदार्थं स्वरूप पण श्रुत ज्ञानवडेज कहेवाय ते. माटें मत्यादि कचार ज्ञान स्थापना योग्यले पण तेो करीने परजीवने उपदेश खापी उपकार कर शकाय नहीं; यने श्रुतज्ञानथी उपदेश थाय माटें उपकारी बे. श्रुतज्ञानना श्रवण करवाथी शुद्धात्मक परमपदनी प्राप्ति थाय बे. माटें श्रुतज्ञान ते महोटुं निमित्त कारण d. श्रुतज्ञानने सांजलवे करी जीवने शुद्धस्वरूप विशुद्ध श्रद्धान ( प्रतीत ) उपजे ने तेथ शुद्धात्मानुं खाचरण, खासेवन तथा अनुभव उपजे तेज परमपद प्राप्ति जा एवी. श्रुतज्ञान सनिलवाना प्रजावथकी जीव, धर्मने विशेषें जाणे विवेकवंत थाय, saat त्याग करे, ज्ञाननी प्राप्ति याय यने अंतें मोह पामे, माटें श्रुतज्ञाननो या दर अवश्य करवो. श्रुतज्ञाननो संयोग थवो जीवने अत्यंत दुर्लन बे. श्रुतज्ञानने सं योगें करीने पूर्वै श्रीगौतम स्वामी, सुधर्मस्वामी, जंबुस्वामी प्रमुख घणा जीवो संसार स मुने तरी गया; अने वर्तमान कालें महाविदेह क्षेत्रने विषे विहरमान सीमंधरादिक वीश तीर्थकरनी वाणी सांजलीने घणा जीवो तरेबे, तथा यागमिक कालें पद्मनाना दिक तीर्थंकरनी वाणी सांजलीने श्रीधर्मरुचि अणगार प्रमुख धनेक जीवो तरशे. ते मज या रतादिक क्षेत्रने विषे हमला पण जे श्रुत ज्ञानने सांनलशे, नशे, श्रं तरंग रुचिएं करीने जे श्रद्धा ( प्रतीत ) करशे, ते सुजन बोधी थशे, कर्मथी विमुक्त थाने तेथी परंपराएं मुक्ति पामशे. एवं श्रुतज्ञाननुं मूल द्वादशांगी बे. ते श्रुतज्ञान नी वांचना, बना, परावर्त्तना, अनुप्रेक्षा यने धर्मकथा थाय बे. ए धर्मकथा श्रीनव वाइ सूत्रमां चार प्रकारनी कही बे :- यापिणी, विद्वेषिणी, निवेदिनी ने संवेदिनी . हवे जे थकी एक तत्वमार्गमां प्रवृत्ति थाय तेने यापिणी कहीएं ; जे थकी मिथ्यात्वनी निवृत्ति थाय तेने विछेपिणी कहीएं ; जे थकी मोहनी अभिलाषा उत्पन्न थाय, तेने नि दिन कहीयें ने जे थकी वैराग जावनी उत्पत्ति थाय तेने संवेदिनी कहीयें. एवीए श्रुतज्ञानरूप कथा श्री अरिहंत देवाधिदेव तीर्थकर परमेश्वर समवसरण मां बेशीने त्रिपदी उच्चारण पूर्वक द्वादश पर्षदाना मध्यने विषे करे. खने तडूप दा नयी श्रीगणधरो द्वादशांगीनी रचना करेबे, ते सूत्र कहेवायले. ते प्रत्येक तीर्थंकरना शासनने विषे थाय बे; तथा ते तीर्थकरोना शासनमां थयेला प्रत्येक बुध, चौद पूर्वधर, तथा दश पूर्वधर प्रमुख महत्पुरुषो जे निबंधोनी रचना करे बे तेने पण सूत्र संज्ञा Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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