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________________ (१६) शिव वधु विवाह उत्सवे, मंडप रचना सार । मुनिवर वर बैठक सही, पृथ्विपीठ मनोहार ॥ ३० ॥ "सिद्धाचल सिमरुं सदा, सोरठ देशमझार । मनुज जन्म शुभ पायके, वंदूं वार हजार ॥" इच्छामि खमासमणो० ॥१६॥ श्रीसुभद्र गिरि को नमो, भद्र है मंगल रूप । जल तरु रज गिरिराज की, सीस चढ़ावत भूप ॥ ३१ ॥ "सिद्धाचल सिमरु सदा, सोरठ देशमभार। मनुज जन्म शुभ पायके, वंदू वार हजार ॥" इच्छामि खमासमणो० ॥१७॥ (१८) विद्याधर सुर अप्सरा, शत्रुजी नदी वास । करता हरता पापको, भजिये भवि कैलास ॥ ३२ ॥ "सिद्धाचल सिमरुं सदा, सोरठ देशमझार । मनुज जन्म शुभ पायके, बंदू वार हजार ॥" इच्छामि खमासमणो० ॥१८॥ निरवाणी प्रभु दूसरे, गत चौवीसी मझार। Jain तस गणधर मुनिमें बड़े, नाम कदंच नगार ॥ ३३ ॥g
SR No.003651
Book TitleSiddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1924
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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