SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विधि. उन भाग्यवानों को धन्य है जो साक्षात् श्रीतीर्थाधिराज श्री सिद्धगिरिजी तीर्थकी यात्रा का लाभ लेते हैं । जो अशक्त असमर्थ या अन्यान्य कार्यवश द्रव्य क्षेत्र कालानुसार तीर्थ पर नहीं जा सकते हैं उन भव्यात्माओं को भी चाहिये, भाव पूर्वक अपने अपने क्षेत्रमें श्रीसिद्धाचलजी तीर्थ की प्रतिकृति-नकशा-पट्टके सन्मुख उत्साह और आडंबरसे जाकर तीर्थयात्रा का लाभ लेवें । सर्व श्रीसंघ यथाशक्ति उत्सवपूर्वक साथमें जावे जिससे श्रीजेन शासन की महिमा होवे और आज जैनोंका अमुक पर्वका दिन है मालूम हो जावे । यूं तो तीर्थ यात्रा हमेशां हो सकती है तथापि कार्तिकी पूनम और चैत्री पूनम यह दो दिन तो खास करके तीर्थ यात्रा करनेके हैं, जिनमें भी कार्तिकी पूनम मुख्य मानी जाती है । इस लिये दोनों में बन सके तो बहुत ही अच्छा है, यदि न बन सके तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003651
Book TitleSiddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1924
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy