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संवंत अढार त्यासी मास अषाढा, वदि आठम भोमवारा। प्रभुके चरण प्रताप संघमां, क्षमारतन प्रभु प्यारारे ।। ध.५॥
(७)
माता मरुदेवीनानंद, देखी ताहरी मूरती मारुं मन लोभापुंजी । करुणानागर करुणासागर, काया कंचनवान । धोरी लंछन पाउले कांइ, धनुष पांचसे मान ।। माता० ॥१॥ त्रिगडे बेसी धर्म कहता, मुणे पर्षदा बार। जोजन गामिनी वाणी मीठी, वरसंती जलधार ॥ माता ॥२॥ उर्वसी रुडी अपछराने, रामा छे मन रंग। पाये नूपुर रणझणे काइ, करती नाटारंग ।। माता०॥३॥
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