________________
(२)
लावणी. तीर्थ सिरी सिद्धाचल राजे, जहां प्रभु आदिनाथ गाजे । तीर्थ अंचली । श्री सिद्ध गिरि तीरथ बड़ो, सब तीरथ सरदार। गण धर पुडारक मोक्षसे, नाम पुंडरिक गिरि धार ।
नाभिनंदन इण गिरि राजे-तीर्थ० ॥१॥ विमलाचल कंचन गिरि, सिद्ध क्षेत्र शुभ ठाम । जो सेवे भवी भावसे, पावे अविचल धाम । ___ धाम गुण गणका ये छाजे-तीर्थ ॥२॥ जय जय श्री जिन आदिदेव, धर्म धुरंधर जान । पूर्व निनानवे नाथजी, आप पधारे आन । ___ आन ये तीरथ की बाजे-तीर्थ ॥३॥ यात्रा करने क लिये, ठौर ठौरके लोग। आते हैं शुभ भाव से, शुद्ध पुण्य के जोग। ___ पापी इण गिरि आते लाजे-तीर्थ० ॥ ४ ॥ नंदन दशरथ रायके, रामचंद्र गुण धाम । पांडव पांचों भरतजी, पाये पद अभिराम ।
नाम सिमरनसे अघ भाजे-तीर्थ ॥५॥
Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org