________________
जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
दूरी से सूर्य की परिक्रमा करता है, जिसको एक परिक्रमामें ३०६८७ दिन लगते हैं। यह ग्रह बहुत अधिक दूरी पर है, इसलिये वर्तमान दुर दर्शक यन्त्रों से इसका पृष्ठ स्पष्ट नहीं देखा जा सकता। जब २०० इञ्च के व्यास का दूरदर्शक यंत्र तैयार हो जायगा, तब विशेष बातें मालूम होंगी।
नेपच्यून युरेनिस के पश्चात् पेरिस के मि० गाल ने सन् १८४३ की २३ सितम्बर को एक प्रह फिर देखा, जिसका नाम नेपच्यून (वरुण ) रखा। नेपच्यून का व्यास करीब ३४००० मील का है, और पृथ्वी से २६७४३७५००० मील की दूरी पर है। नेपन्यून सूर्य से २७६००००००० मील दूरी पर है, और सूर्य की परिक्रमा करने में इसको ६०१२७ दिन लगते हैं। यूरेनिस की तरह इसका भी विशेष हाल अभी तक जाना नहीं जा सका है।
नेपच्यून के पश्वात् सन् १६३० में एक ग्रह का फिर पता लगा, जिसका नाम प्लुटो (कुबेर ) रखा गया है। इसका भी घिशेष हाल अभी तक मालूम नहीं हो पाया है।
विचारशील पाठक वृन्द ! गत लेखों में जैन शास्त्रों के सर्वज्ञों की सर्वज्ञता आप देख ही चुके हैं कि पृथ्वी, सूर्य और चन्द्रमा के सम्बन्ध का उनको कितना शूक्ष्म और अधिक ज्ञान था, और सर्वज्ञता की दिव्यदृष्टि में कितनी शक्ति थी। यदि हम अंधश्रद्धा से काम न लेकर विवेक, न्याय और तर्क से बात को निष्पक्ष भाव से बिचारें तो जैनशास्त्रों में एक-आध नहीं, परन्तु हजारों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org