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________________ जैन शास्त्रों को असंगत बातें ! लगभग बृहस्पति की सी ही है। शनि को अक्ष भ्रमण करने में १०१ घण्टे लगते हैं। शनि की गति बहुत धीमी है इसीलिये इसको शनैश्चर यानी धीरे धीरे चलने वाला कहते हैं। शनि के भी १० उपग्रह हैं, जिनमें अन्तिम उपग्रह वृहस्पति के कुछ उपग्रहों की तरह उलटी दिशा में भ्रमण करता है। शनि का भी ऊपरी पृष्ठ वाष्पीय और अत्यन्त गर्म है, अतः वहां पर भी यहां जैसे जीवधारियों का होना असम्भव है। अलबत्ता शनि और बृहस्पति के कुछ उपग्रहों की दशा ऐसी दिखाई पड़ती हैं कि उनमें जीवधारियों का होना बहुत सम्भव हैं। शनि और बृहस्पति की गति में एक विचित्रता देखी जा रही है। पहिले यह आकाश में पश्चिम से पूर्व को जाते दिखाई देते हैं, फिर कुछ चल कर रुक जाते हैं, और फिर पश्चिम की तरफ चलने लगते हैं। तथा फिर कुछ दिन पीछे पूर्व को लौट पड़ते हैं। हमारी पृथ्वी से शनि की आकर्षण शक्ति कुछ अधिक है, मगर घनत्व पृथ्वी की अपेक्षा बहुत हलका है। यूरेनिस शनि के पश्चात् सूर्य के गिर्द यूरेनिस की कक्षा है। इसका हाल प्राचीन ज्योतिषियों को तो मालूम ही नहीं था। सन् १७८१ की १३ मार्च को विलियम हर्सल ने इसको देखा और बताया। यूरेनिस को हमारी भाषा में हम प्रजापति भी कहते हैं। यूरेनिस का व्यास ३१००० मील का है, और पृथ्वी से १६०६१८३००० मील दूरी पर है। यूरेनिस १५७ कोटि मील की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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