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जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! में प्रकाश अधिक होता है। सर्दी के दिनों में सूर्य पुथ्वी से निकट और दक्षिणायण होता हैं और गमीं में पृथ्वी से दूर
और उत्तरायण होता है। पृथ्वी का अक्ष ठीक ध्रुवतारे की तरफ रहता है। पृथ्वी का घनत्व २६०००००००००० घन मील है और वजन १६००० शंख मन है। पृथ्वी पर वायु-मण्डल का दबाव औसतन ७३ सेर प्रति वर्ग इञ्च का है और वायुमण्डल रजकण से भरा हुआ हैं, इसी से आकाश नीला दिखाई पड़ता है । पृथ्वी की परिक्षेपण शक्ति ०.४५ है यानि सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर जितना आता है, उसका १०० में ४५ भाग बिखर कर वापस लौट जाता है। वर्तमान विज्ञान के अन्वेषणों द्वारा पहाड़ों नदियों, समुद्रों, ज्वालामुखी पहाड़ों, आदि के बनने, होने, मिटने का क्रम वर्षा, हवा, तूफान, भूकम्प आदि के होने, बनने, बहने आदि के सम्बन्ध की बातें सही सही और विस्तार पूर्वक इतनी अधिक जानी जा चुकी हैं कि उनको यदि सबको लिखा जाय तो हजारो पृष्ठों का एक बहुत बड़ा ग्रन्थ बन जाय। इस छोटे से लेख में कहां तक लिखा जाय ? यदि किसी को इस विषय को जानने की इच्छा हो तो उसे इस विषय के साहित्य को ध्यान पूर्वक पढ़ना चाहिये। ... ....... मंगल .. मंगल के विषय का वृत्तान्त हम को सौर-चक्र के पिन्डों में पृथ्वी के सिवाय सब से अधिक ज्ञात है। एक तो इसको देखने में वे कठिनाइयां नहीं हैं जो बुध और शुक्र के विषय में उपस्थित
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