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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
द्वीप से दुगुणा बड़ा माना है । एक बात यह भी जान लेने की आवश्यकता है कि सनातन धर्म के ग्रन्थों में एक योजन को चार कोस का माना गया है मगर जैन शास्त्रों में शास्वत वस्तुओं के लिये एक योजन २००० कोस का यानी चार हजार माइल का माना गया है और अशास्वत वस्तुओं के लिये चार कोस का माना गया है । पृथ्वी के द्वीप, समुद्र आदि शास्वत ही माने गये हैं । श्रीमद्भागवत के पश्चम स्कन्ध के द्वीप और समुद्रों के नाम और माप आप को नीचे दी हुई तालिका से आसानी से मालूम हो जायँगे ।
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द्वीप और समुद्रों के नाम १ जम्बू द्वीप
२ क्षार समुद्र ३ लक्षद्वीप
४ इक्षुरस समुद्र ५ साल्मलि द्वीप
६ सुरा समुद्र
७ कुश द्वीप
८ घृत समुद्र ६ क्रौंच द्वीप
१० क्षीर समुद्र
११ शाक द्वीप १२ दधि समुद्र १३ पुष्कर द्वीप
१४ सुधा समुद्र
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योजन
१०००००
१०००००
२०००००
२०००००
४०००००
४०००००
८०००००
८०००००
१६०००००
१६०००००
३२०००००
२२०००००
६४०००००
६४०००००
कुल २५४०००००
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