________________ 228 जैन शास्त्रों की भसंगत बातें ! बुद्धि जिसका पोषण करती हो, * गांधीजी जैसे आप्त पुरुष जिसका समर्थन करते हों, वह निश्चय ही धर्म है। - ऐसे धर्म के खिलाफ जो सच्छास्त्र सद्बुद्धि और सत्-पुरुषों द्वारा पोषित हो, यदि संस्कृत भाषा की कोई पोथी दूसरी बात कहे, तो ऐसी पोथी को शास्त्र कहना भृषियों की महिमा को घटाना है। जिन ऋषियोंने शंख, मृगचर्म और बाघम्बर को एवं कस्तूरी और चामर को ठाकुरजी के पास पहुंचाने में हिचकिचाहट नहीं की, वे ऋषि चार करोड़ जीवित मनुष्यों को देवदर्शन से वंचित रखने की व्यवस्था लिख जायं, यह कदापि सम्भव नहीं। वे इस समय यदि जिन्दा होते तो वे भी वही बात कहते जो आज गांधीजी कह रहे हैं। प्रस्तुत कथन केवल इतना ही है कि हम शास्त्र भी पढ़ें और साथ ही कुछ अपनी अक्ल से भी काम लें। भगवान् कृष्ण के इस वचन की भी कुछ इज्जत करें "बुद्धौ शरणमन्विच्छ" * सिद्धान्ततः (महात्मा) गांधीजी को सभी विषयों में 'आप्त' नहीं माना जा सकता-प्रकाशक। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org