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________________ २२० जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! अगर वह किसी शास्त्र की दुहाई देता है तो समझलो कि वह शास्त्र कुशास्त्र है। इसी तरह शूद्रोंको धर्म क्रियाएँ न करने देना, सूतक आदि में धर्म क्रियाओंका रोकना भी पाप है क्योंकि इससे अशुभ प्रवृतिसे शुभप्रबृतिमें जानेसे रोका जाता है, कषायोंको शान्त करने के साधन छीने जाते हैं। यह कार्य मूल सिद्धान्तोंके बिलकुल विरुद्ध है, इसलिये घोर पाप है। अगर किसी पुस्तकमें ऐसी अधार्मिक आज्ञाएँ लिखी हों तो समझलो वह पापी ग्रन्थ है। उसे शास्त्र मानना घोर मिथ्यात्व है। ___ थोड़े से उदाहरण देकर हमने शास्त्रोंकी परीक्षाका तरीका बतलाया है। इस तरीके से मनुष्य कभी धोखा नहीं खा सकता। और यह तरीका है भी इतना सरल, कि बिलकुल अपढ़ और साधारण बुद्धिका आदमी भी इसका प्रयोग कर सकता है। जिस मनुष्यमें इतनी भी तर्क बुद्धि नहीं है उसे आज्ञानिक मिथ्यात्व के पक्ष में से कौन छुड़ा सकता है ? ऐसे लोग -जो कि शास्त्रोंकी परीक्षा नहीं कर सकते-जब धर्म विरुद्ध, धर्मविरुद्ध चिल्लाते हैं तब उन का पाप कई गुणा हो जाता है। वे इस दम्भके द्वारा अपने आज्ञानिक मिथ्यात्वको और भी ज़्यादः चिरस्थायी बनाते है। जैनधर्म दुनिया के सामने गर्जकर कहता है-पक्षपातो न मे वीरे न द्वेषः कपिलादिषु। युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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