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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
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खोज निकालने के साधन हैं । जिस प्रकार एक जज, अनेक गवाहोंकी बातें सुनकर अपनी बुद्धिसे सत्य असत्यका निर्णय करता है उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्यको शास्त्रोंकी बातें सुनकर सत्यासत्यका निर्णय करना चाहिये । जिस प्रकार प्रत्येक गवाह ईश्वरकी कसम खा कर सच बोलनेकी बात कहता है परन्तु गवाहों के परस्परविरुद्ध कयन से तथा अन्य विरूद्ध कथनों से उनमें अनेक मिथ्यावादी सिद्ध होते हैं उसी प्रकार अनेक शास्त्र महावीर या किसी परमात्माकी दुहाई देने पर भी परस्पर विरुद्ध कथनसे या युक्तिविरुद्ध कथनसे मिथ्या सिद्ध हो सकते हैं । इसलिये शास्त्र के नामसे ही धोखा खा जाना अज्ञानता है ।
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यह समझना कि 'शास्त्रकी परीक्षा तो हम तब करें जब हमारी योग्यता शास्त्रकारोंसे ज्यादः हो' भूल है। शास्त्रकारों के सामने हमारी योग्यता कितनी भी कम क्यों न हो, हम उनके शास्त्रोंकी जाँच कर सकते हैं। गायन में हमारी योग्यता बिलकुल न हो तो भी दूसरे मनुष्यके गानेका अच्छा बुरापन हम जान सकते हैं। मिठाईके स्वादकी परीक्षा करनेके लिये यह आवश्यक नहीं है कि हम मिठयासे ज्यादः या उसके बराबर मिठाई बनाने में निपुण हों । हम व्याख्यान देना बिलकुल न जानते हों, फिर भी दूसरोंके व्याख्यानकी समालोचना कर सकते हैं। यदि ऐसा न होता तो आज हम अपनेको स्वाभिमानके साथ जैनी क्यों कहते ? जब हम महावीर से ज्यादः ज्ञानी नहीं
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