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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
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भी कहते हैं, के दर्शन किये। बन्दना नमस्कार कर सुख साता पूछकर मैंने अपना परिचय दिया तो परिचय सुनते ही बहुत हर्षित हुए। उनसे भी मैंने शास्त्रों की असत्य बातों को हटाये जाने के लिये प्रार्थना की तो आप फरमाने लगे कि आपके लेख मैंने ध्यान-पूर्वक पढ़े हैं शास्त्रों की असत्य प्रमाणित होनेवाली बातों को हटाना नितान्त आवश्यक है ; वरना ऐसासमय आने वाला है कि इनके लिये पश्चात्ताप करना पड़ेगा। मैने अर्ज की कि महाराज, आपने तो अपने जीवन में जैन साहित्य का बहुत बड़ा प्रकाशन किया है इस काम पर भी गौर फरमाकर किसी प्रकारकी योजना काम में लावें। तो आप फरमाने लगे कि अब मैं बहुत बृद्ध हो गया हूं। मेरी सामर्थ्य वैसी नहीं रही, मेरी शक्ति के बाहिर की बात है। इसके पश्चात् कार्तिक सुदि १ के दिन मैं वापिस सुजानगढ़ पहुंचा। कार्तिक सुदि २ के दिन जैनश्वेताम्बर तेरापंथ सम्प्रदाय के आचार्य महाराज साहब से बातचीत प्रारम्भ करने के लिये कृपा करने की प्रार्थना की तो श्री जी ने फरमाया कि आजकल समय की कमी है। मैं ध्यान में रखकर समय निकालंगा। मिगसर बदि १ के दिन श्री जी महाराज का सुजानगढ़ से बिहार हुवा। इन १५ दिनों के दरमियान में श्री जी महाराज से दो तीन दफा बातचीत के लिये समय दिलाने के वास्ते प्रार्थना की ; परन्तु आपने फरमाया कि आजकल समय की बहुत कमी है। पोष बदि में रवाना होकर मैं दिसावर चला गया जिसका प्रथम चैत्र बदि १ के दिन
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