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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
होता । तो भगवान् ने यह बचन कहां पर बैठे हुए कहा है ? भारतवर्ष में बैठे हुऐ उन्होंने ऐसा कहा है; और भारतवर्ष में १८ मुहूर्त्त से बड़ा दिन नहीं होता यह सच्च बात है । इसलिये यह ठीक ही तो कहा है। मैने कहा महाराज, उन्होंने कहा तो स्पष्टतः सारे जम्बूद्वीप के लिये है फिर हम भारत में बैठे कहने से ही सिर्फ भारतवर्ष के लिये कैसे समझ लें ? इसपर महाराज साहब ने फरमाया कि नहीं, उन्होंने ठीक ही कहा है। शास्त्रों पर श्रद्धा रखनी चाहिये । इसपर से मैंने बिचार लिया कि बात आगे बढ़ाने में कोई लाभ नहीं । इसके पश्चात् कार्तिक बदि ८ के दिन जैनाचार्य श्री रामविजय जी महाराज साहब के शिष्य श्री मुक्तिविजय जी महाराज के दर्शन किये । उनसे जो बार्त्तालाप हुई वह तकरीबन आचार्य महाराज श्री सागरानन्द सूरि जी महाराज से मिलती हुई है । उन्होंने भी शास्त्रों पर श्रद्धा रखने पर ही जोर दिया। इसके पश्चात् बम्बई से वापसी में कार्तिक बदि १२ के दिन अहमदाबाद में जैनाचार्य श्री रामविजय जी महाराज साहब से बार्त्तालाप हुई। सुना कि आचार्य महाराज संस्कृत प्राकृत के बड़े विद्वान और जैन शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता हैं। आचार्य महाराज से शास्त्रों के विकार को हटाने के लिये प्रार्थना की; परन्तु आपने भी शास्त्रों पर श्रद्धा रखने के लिये ही फरमाया । इसके पश्चात् कार्तिक बदि १४ के दिन जोधपुर में जैनाचार्य श्री ज्ञानसुन्दर जी महाराज - जिनको आजकल श्री देवगुप्त सूरि जी महाराज
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