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________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! पहुंच जाते हैं जहाँ से हम रवाना हुए थे तो इससे इस बात के साबित ( सिद्ध) होने में कोई भी संशय नहीं रह जाता है कि हमने एक गोल पिण्ड पर चक्कर लगाया है। आप कलकत्ते से पश्चिम की तरफ चलते जाइये बम्बई, यूरोप, अमेरिका, जापान होते हुए फिर वापिस कलकत्ता एक ही दिशा में चलते हुए पहुंच जाते हैं। जैन शास्त्रों के बताये हुए पृथ्वी के चपटे ( समतल ) आकार पर आप एक स्थान से एक ही दिशा में चलते जाइये ; नतीजा यह होगा कि आप दूसरे सिरे पर जाकर अटक जायेंगे जिस स्थान से आप रवाना हुए थे, वह पिछले सिरे पर रह जायगा। यही एक पृथ्वी के गेंद की तरह गोल होने का जवरदस्त और प्रत्यक्ष प्रमाण है जिसका किसी प्रकार से भी खण्डन नहीं किया जा सकता। आइये, अब जरा गतिके विषय में विवेचन करें। इससे हमें कोई बहस नहीं कि सूर्य गति करता है या पृथ्वी। इस वक्त हमें केवल गति की रफ्तार पर ही विचार करना है। जैन शास्त्रों में बताया है कि सूर्य मकर संक्रान्त में ५३०५६ योजन की गति एक मुहूर्त में करता है यानि करीब २१२२००६६ ( दो करोड़ बारह लाख वीस हजार छियासठ) माइल की। एक मुहूर्त ४८ मिनट का माना गया है। इस हिसाब से एक मिनट में सूर्य की गति ४४२०८४१ माइल करीब की होती है जब कि वर्तमान हिसाब से रफ्तार एक मिनट में करीब १७६ माइल की प्रमाणित होती है। हम कलकत्ते से अपनी जेब घड़ी (Pocket Watch) Jain Education International For Private & Personal Use Only ____www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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