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जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! जैन शास्त्रों में तीर्थंकरों की आयु पूर्वो' तथा वर्षों में और शरीर की लम्बाई धनुष्यों तथा हाथों में वर्णन की गई है। एक पूर्व के ७०५६०००००००००० वर्ष होते हैं और एक धमुष्य ३३ हाथ या ५ फुट ३ इञ्च का माना जाता है। आजकल के प्रायः इतिहासकार चौबीस तीर्थंकरों में केवल अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर को सच्चा ऐतिहासिक पुरुष और भगवान पार्श्वनाथ को सन्दिग्ध रूप में मानते हैं। हम कल्पित नहीं मानते तो भी पहिले भगवान ऋषभ देव की आयु की संख्या से दसवें भगवान शीतलनाथ स्वामी की आयु संख्या तक जो कि पूर्वो में बताई है और ग्यारहवें भगवान श्रेयांस प्रभु से बाईसवें भगवान अरिष्टनेमि तक आयु की संख्या जो वर्षों में बताई है, पर दृष्टि डलने से हमें यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि संख्याएं अवश्य कल्पित हैं। किसी भी एक व्यक्ति की आयु की संख्या के अंक इतनी अधिक सुन्नों (Ciphers) के साथ समाप्त होना असम्भव नहीं, तो असम्भव के लगभग अवश्य है। परन्तु इन संख्याओं में तो केवल भगवान महावीर प्रभु के सिवाय तेवीसों ही तीर्थंकरों की आयु के आंकड़ों में कम से कम ऊपर दो सुन्न (Ciphers) और अधिक से अधिक ऊपर की सुन्नों की संख्या १७ पहुंच गई है। इसी प्रकार इतनी अधिक सुन्नों (Ciphers) के साथ समाप्त होनेवाली संख्याओं की आयु का लगातार तेवीसों ही भगवानों के लिये होना क्या अस्वाभाविक नहीं है ? आयु के बाबत पूर्वो में दस-दस के अन्तर से संख्या
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