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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
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ही जैन विद्वानों के सामने यह विरोधाभास रखा गया तो उन्होंने कहा कि ऐसा तरीका निकाला जिससे ३४३ घनरज्जू सिद्ध हो जाय ।" जैन शास्त्रों में लिखी हुई असत्य कल्पना को जबरन सत्य सिद्ध करने का तरीका चाहने वाले ऐसे विद्वानों की संतुष्टि के लिये मुझे एक कल्पना सूझ पड़ी वह लिख दूँ ताकि ऐसे विद्वानों को भी संतोष मिले। जिन पूर्वों में पद संख्या बहुत गुणी अधिक है और स्याही खर्च के हाथियों की संख्या बहुत कम है उनके लिये तो यह कह दिया जाय कि पदों के अक्षर छोटे छोटे बहुत महीन थे और जिन पूर्वो की पद संख्या बहुत अधिक है उनके लिये यह कह दिया जाय कि पदों के अक्षर बहुत बड़े बड़े थे। जैसे पहिले उत्पाद पूर्व के अक्षर यदि एक एक इच के थे तो बारहवें प्राणप्रवाद पूर्व के प्रत्येक अक्षर उससे १४०० गुणा बड़े लगभग ११६ फुट के थे और पहिले पूर्व के अक्षर पतली स्याही के लिखे हुए और बारहव के गाढ़ी से गाढ़ी स्याही के लिखे हुए थे । इस प्रकार कह कर हम उन विद्वानों के लिये तरीका मुझा सकते हैं । यह तो हुई स्याही खर्च के हाथियों की संख्या की बात अब जरा चौदह पूर्व के श्लोक और अक्षर संख्या पर भी विचार कर लें। चौदह पूर्व के पदों की कुल सख्या ८३६६१०००६ है । एक पद के ५१०८८४६२१३ श्लोक के हिसाब से चौदह पूर्व के कुल श्लोकों की संख्या ४२८६४३८४०१२२३२२७२६ होती है और एक श्लोक ३२ अक्षर के हिसाब से चौदह पूर्व के कुल अक्षरों की संख्या
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