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जैन शास्त्र की असंगत बातें ! - शास्त्रों में यह भी लिखा है कि ३२ अक्षरों का एक श्लोक और एक पद के ५१०८८४६२१३ श्लोक होते हैं। ऊपर दिये हुये यन्त्र से ज्ञात होता है कि पहिले उत्पाद पूर्व, जिसमें एक करोड़ पद संख्या है, के लिखने में अम्बाबाड़ी सहित एक हाथी डूबे जितने बड़े भरे हुए पात्र जितनी स्याही (ink ) खर्च होती है और बारहवं प्राण-प्रवाद पूर्व जिस में एक करोड़ छप्पन लाख पद संख्या है, के लिखने में वैसे ही २०४८ हाथियों जितने पात्र की स्याही खर्च होती है। सातवें आत्मप्रवाद पूर्व जिसमें २६ करोड़ पद संख्या है, के लिखनेमें ६४ हाथियों जितनी स्याही
और बारहवे प्राणप्रवाद पूर्व जिसमें केवल एक करोड़ छप्पन लाख पद संख्या है, के लिखने में २०४८ हाथियों जितनी स्याही खर्चहोती है। पहिले उत्पाद पूर्व में एक हाथी जितनी और नौवें प्रत्याख्यान पूर्व जिसमें पहिले उत्पाद पूर्व से १६ लाख पदों की संख्या कम है उस में २५६ हाथियों जितनी स्याही खर्च होने की कल्पना की है । सब पूर्वो की पद संख्या और हाथियों जितनी स्याही खर्च की संख्या पर दृष्टि डालने से सर्वज्ञता यह साफ बतला रही है कि कल्पना करने की सुन्दरता लाजवाब है ! पद के अक्षरों की संख्या निश्चित करके स्याही खर्च के हाथियों की इस प्रकार की अबोध कल्पना करना अपनी सूक्ष्म बुद्धि का परिचय देना है ! लाडनूं के श्री मूलचन्दजी बैद ने अपने “लोक के कथित माप का परीक्षण" शीर्षक गत दिसम्बर के 'तरुण' के लेख में पृष्ठ ६८६ पर कहा है कि "कितने
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