SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! तीनों सम्प्रदायों के विज्ञ सन्त मुनिराज मनुष्य-जीवन के उत्कर्ष के लिये भिन्न भिन्न तरह से और परस्पर बिरोधी कर्तव्य और धर्म बतला रहे हैं। इसलिये जैन कहलाने वाले सब सम्प्रदायों के शास्त्रज्ञों, संयमी एवं विज्ञ मुनिराजों और जन-समुदाय के विचारशील व्यक्तियों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि शास्त्रों के शब्दों के आधार पर जो खींचातानी और विरोध खड़ा हुआ है उसे छोड़ कर हम सब जैनी एक सूत्र में बंध जायें और एक भहती सभा का आयोजन करके मानव-जीवन के हितों का एकसा मार्ग स्थिर करलें । छोटी छोटी नगण्य नुक्ताचीनी पर बाल की खाल खींचने के स्वभाव को त्याग कर उदारता पूर्वक सब मिलकर एक हो जायें । बादशाह अकबर के समय में (लगभग ३०० वर्ष पहिले) जिन जैनियों की संख्या करोड़ों पर थी, आज उसका क्या हाल हो रहा है - वह किसी से छिपा नहीं है । छोटे छोटे टुकड़ों में बँट कर हम जैनी परसर एक दूसरे के शत्रु हो रहे है । जैनत्व के लिये यह बड़ी घातक और पैमाल करने वाली अवस्था है । जैन शास्त्र नन्दी सूत्र में ( जो मुनि श्री अमोलक ऋषिजी महाराज, दक्षिण हैदराबाद कृत भाषानुवाद सहित है) पृष्ठ १६५ से १६७ तक चौदह पूर्वो का वर्णन है । उसमें १४ ही पूर्वों के नाम और वे किन किन विषयों पर लिखे हुये हैं, बताते हुये प्रत्येक पूर्व की पदसंख्या बतलाई हैं और किस किस पूर्वके लिखने में कितनी कितनी स्याही खर्च हो सकती है इसकी कल्पना की है जो इस प्रकार है कि पहिले पूर्व के लिखने में एक हाथी अम्बा बाडी सहित स्याहीके पात्र में डूब जाय जितनी स्याही खर्च होती है तथा दूसरे पूर्व में ऐसे ही दो हाथियों जितनी स्याही और तीसरे में चार, चौथे में आठ, पांचवे में सोलह इसी प्रकार प्रत्येक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy