SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! १०३ बताई गई है जिसको हम ५६२७०४००००००००००००००० वर्ष की भी कह सकते हैं और सुविधा से बोलने के लिये एक त्रुटितांग की भी कह सकते हैं। व्यावहारिक ज्ञान से एक त्रुटितांग ही कहना मुनासिब समझना चाहिये, कारण जैसे राम ने श्याम को दस रुपये दिये तो व्यावहारिक भाषा में राम यह नहीं कहेगा मैंने श्याम को ६४० पैसे दिये या १९२० पाई दी। यदि वैसा कहेगा तो बेवकूफ कहलायेगा। इसी न्याय से जैन शास्त्रकारों को भी भगवान ऋषभदेव की आयु एक त्रुटितांग की कहनी चाहिये थी मगर शास्त्रों में सब जगह चौरासी लाख पर्व का ही कथन है। उनकी भावना शायद संख्या को बड़ी से बड़ी बता कर कहने की रही होगी। ५६२७०४००००००००००००००० की यह संख्या २१ अंकों की है और भारतीय संख्या के नाम केवल १६ अङ्क तक ही हैं। इस से आगे कोई नाम नहीं है। इसीलिये भगवान ऋषभदेव की आयु वर्षों में नहीं बता सके। यदि संख्या का कोई नाम फिर होता तो अवश्य उसी नाम से वर्षों में बताते। भगवान ऋषभदेव की आयु को त्रुटितांग न बताकर चौरासी लाख पूर्व के नाम से बताना यह साफ जाहिर करता है कि तिल को ताड़ कहने की भावना उनके हृदय में काम कर रही थी। दस रुपये को १९२० पाई कहने की तरह इस बात को हम अस्वाभाविक कह सकते हैं। इन आंकड़ों में विचार करने का तीसरा स्थान है-चौरासी लाख पूर्व से लगा कर आखिरी शीर्षप्रहेलित तक की प्रत्येक संख्या को Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy