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. जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
काबिल हैं। सब से पहिले जहां एक मुहूर्त में ३७७३ श्वासोश्वास बताया है, वह असत्य प्रतीत होता है। शास्त्र में बताया है कि "यह ३७७३ श्वासोश्वास हृष्ट-पुष्ट बलवंत रोग रहित पुरुष के जानना"। एक मुहूर्त के ४८ मिनिट माने गये हैं। वर्तमान समय में एक हृष्ट-पुष्ट रोग रहित मनुष्य के एक मिनिट में १५ श्वासोश्वास माने जाते हैं। इस हिसाब से एक मुहूर्त यानी ४८ मिनिट में ७२० श्वासोश्वास हुए। इसलिये ३७७३ श्वासोश्वास का बताना असत्य प्रतीत होता है। यदि कोई कहे कि जिस समय शास्त्रों में कहा गया था, उस समय शायद मनुष्य के श्वासोश्वास की गति तेज होगी और एक मुहूर्त में ३७७३५ वासोश्वास होते होंगे। परन्तु यह कयाश ठीक नहीं हो सकता। कारण, यह माना गया है कि बालक और बृद्ध, जिनकी कि बमुकाबिले हृष्ट-पुष्ट जवान के शक्ति कम होती है, के श्वासोश्वास की गति अधिक होती है। यह भी मानी हुई बात है कि वर्तमान समय के मनुष्यों से भगवान महावीर के समय के मनुष्यों में शक्ति अधिक थी। इसलिये उनके श्वासोश्वास की गति अधिक कदापि नहीं होनी चाहिये । फिर श्वासोश्वास की यह उलटी दशा कैसे बताई ? क्या अन्य बातों की तरह श्वासोश्वास भी बढा कर पंचगुने बताये गये हैं ? इन आंकड़ों में दूसरा स्थान विचार करने का है-चौरासी लाख पूर्व का एक त्रुटितांग बताना। भगबान ऋषभदेव स्वामी की आयु जैन शास्त्रों में सब जगह चौरासी लाख पूर्व की
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