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________________ प्रतिक्रमण सूत्र । + एसो पंचनमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ॥१॥ अन्वयार्थ...' एसो ' यह — पंचनमुक्कारो ' पाँचों को किया हुआ नमस्कार 'सव्वपावप्पणासणो' सब पापों का नाश करने वाला 'च' और 'सव्वेसिं' सब 'मंगलाणं' मंगलों में ' पढमं ' पहला-मुख्य · मंगलं ' मंगल ‘हवइ ' है ॥१॥ भावार्थ--श्री अरिहंत भगवान्, श्री सिद्ध भगवान्, श्री आचार्य महाराज, श्री उपाध्यायजी, और ढाई द्वीप में वर्तमान सामान्य सब साधु मुनिराज-इन पांच परमेष्ठियों को मेरा नमस्कार हो । उक्त पांच परमेष्ठियों को जो नमस्कार किया जाता है वह सम्पूर्ण पापों को नाशकरने वाला और सब प्रकार के-लौकिकलोकोत्तर-मंगलों में प्रधान मंगल है। २-पंचिंदिय सूत्र । * पंचिंदियसंवरणो, तह नवविहबंभचेरगुत्तिधरो । चउविहकसायमुक्को, इअ अट्ठारसगुणेहिं संजुत्तो ॥१॥ अन्वयार्थ---' पंचिंदियसंवरणो' पाँच इन्द्रियों का संवरणनिग्रह करने वाला, ' तह ' तथा 'नवविहबभचरगुत्तिधरो' + एष पञ्चनमस्कारस्सर्वपापप्रणाशनः । ___ मङ्गलानां च सर्वेषां प्रथमं भवति मङ्गलम् ॥ १ ॥ * पञ्चेन्द्रियसंवरणस्तथा नवविधब्रह्मचर्यगुप्तिधरः । चतुर्विधकषायमुक्त इत्यष्टादशगुणैस्संयुक्तः ॥ १॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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