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प्रतिक्रमण सूत्र ।
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★ विज्जाजोइ समंततंतसिद्धिउ अपयत्तिण भुवणभु अट्ठविह सिद्धि सिज्झहि तुह नामिण | तुह नामिण अपवित्तओ वि जण होइ पवित्तउ तं तिहुअणकल्लाणकोस तुह पास निरुत्तर ||४|| अन्वयार्थ - 'तुह नामिण' तुम्हारे नाम से 'अपयत्तिण' बिना प्रयत्न के ' विज्जाजोइसमंततंतासिद्धिउ' विद्या, ज्योतिष्, मन्त्र और तन्त्रों की सिद्धि होती है 'भुवणब्भुड' जगत् को आश्चर्य उपजाने वाली 'अहविह सिद्धि' आठ प्रकार की सिद्धियाँ 'सिज्झहि' सिद्ध होती हैं 'तुह नामिण' तुम्हारे नाम से 'अपवित्तओ 'वि जण' अपवित्र भी मनुष्य 'पवित्तर होइ' पवित्र हो जाता है । "तं' इस लिये 'पास' हे पार्श्व ! 'तुह ' तुम 'तिहुअणकल्ला - कोस' त्रिभुवनकल्याणकोष 'निरुत्तर' कहे गये हो ॥ ४ ॥
भावार्थ - हे पार्श्व प्रभो ! तुम 'त्रिभुवनकल्याणकोश' इस लिये कहे जाते हो कि तुम्हारे नाम का स्मरण -- ध्यान करने से बिना प्रयत्न किये ही विद्या, ज्योतिष्, मन्त्र, तन्त्र आदि सिद्ध होते हैं; आठ प्रकार की सिद्धियाँ भी, जो कि लोक में चमत्कार दिखाने बाली हैं, सिद्ध होती हैं और अपवित्र भी मनुष्य पवित्र हो जाते हैं || ४ ||
x विद्याज्योतिर्भन्त्रतन्त्र सिद्धयोऽप्रयत्नेन,
भुवनाद्भुता अष्टविधाः सिद्धयः सिद्ध्यन्ति तव नाम्ना । तव नाम्नाऽपवित्रोऽपि जनो भवति पवित्रः, तस्त्रिभुवनकल्याण कोषस्त्वं पार्श्व निरुक्तः ॥ ४॥
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