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प्रतिक्रमण सूत्र
“जयउ सामि, का 'जय वीयराये तक चैत्य-वन्दन करे फिर खमासमण-पूर्वक 'इच्छा०' कह कर के 'कुसुमिणदुसुमिणराइयपायच्छित्तविसोहणत्थं काउस्सग्गं करूँ?' कहे और गुरु जब 'करेह' कहे तब 'इच्छं' कह कर 'कुसुमिणदुसुमिणराइयपायच्छित्तविसोहणत्थं करेमि काउस्सग्ग' तथा 'अन्नत्थ ऊससिएणं' इत्यादि कह कर चार लोगस्स का 'चंदेसु निम्मलयरा' तक काउस्सग्ग करके 'नमो अरिहंताण-'पूर्वक प्रगट लोगम्स पढ़े । ___ रात्रि में मूलगुणसम्बन्धी कोई बड़ा दोष लगा हो तो "सागरवरगम्भीरा' तक काउम्सन्ग करे । प्रतिक्रमण का समय न हुआ हो तो सज्झाय ध्यान करे । उस का समय होते ही एक-एक खमासमण-पूर्वक “आचार्य मिश्र, उपाध्याय मिश्र" जंगम युगप्रधान वर्तमान भट्टारक का नाम और 'सर्वसाधु' कह कर सब को अलग अलग वन्दन करे । पीछे 'इच्छकारि समस्त श्रावकों को वंदूं' कह कर घुटने टेक कर सिर नमा कर दोनों हाथों
इस के सिवाय खरतरगच्छ की सामाचारी में निम्नलिखित पाट-भेद भी है:चाया गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है:
__ "चउसय छाया सिया, तिल्लुके चेइए वंदे ॥ ४॥" अन्तिम गाथा तो बिल्कुल भिन्न है:
"वन्दे नव कोडिसयं, पणवीस कोडिलक्स तेवना।
भट्ठावीस सहस्सा, चउसय अट्टासिया पडिमा " ॥५॥ २---खरतरगच्छ में 'जय वीयराय.' की सिर्फ दो गाथाएँ अथीत . "सेवणा आभवमखण्डा" तक बोलने की परम्परा है, अधिक बोलने की · नहीं। यह परम्परा बहुत प्राचीन है । इस के सबूत में ३९ वे पृष्ट का नोट
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