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प्रतिक्रमण सूत्र ।
पन्नरसण्हं दिवसाण पन्नरसण्हं राईणं जं किंचि०' कहे। पीछे द्वादशावर्त वन्दना दे कर 'देवसिअ आलोइय पडिक्कंता इच्छा० पक्खि पडिक्कमुँ?, इच्छं, सम्म पडिक्कमामि' कह कर 'करेमि भंते० इच्छामि पडिक्कमिडं जो मे पक्खिओ०' कहे । पीछे 'इच्छामि०, इच्छा० पक्खिय सूत्र पहुँ ?, इच्छं' कहे । पीछे तीन नवकारपूर्वक वंदित्तु सूत्र पढ़ कर सुअदेवया• की थुह कह कर नीचे बैठे । दाहिना घुटना खड़ा करके एक नवकार पढ़ कर 'करेमि भंते, इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे पक्खिओ०' और वंदित्तु सूत्र कहे । पीछे खड़े हो कर 'करेमि भंते०, इच्छामि ठामि०, तस्स उत्तरी०, अन्नत्थ०' कह कर बारह लोगस्स का कायोत्सर्ग करे । उसे पारके प्रकट लोगस्स पढ़ कर मुहपत्ति पडिलेह कर द्वादशावर्त वन्दना दे । पीछे — इच्छा० समाप्त खामणणं अब्भुट्ठिओमि आभितर-पक्खि खामेउँ?, इच्छं, खामेमि पक्खिरं एगपक्खस्स पन्नरसण्हं दिवसाणं०' कह कर 'इच्छामि०, इच्छा० पक्खियखामणा खाएँ ?' कह कर इच्छामि पढ़ कर हाथ नीचे रख शिर झुका एक नवकार पढ़े। इस रीति से चार दफा करे । पीछे दैवसिक-प्रतिक्रमण में वदितु के बाद जो विधि है, वही कुल समझ लेना चाहिये। विशेष इतना है कि 'सुअदेवया०' की जगह 'ज्ञानादिगुणयुतानां०' और 'जिस्से खिते, की जगह 'यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य०' कहे। स्तवन के स्थान में अजितशान्ति; सज्झाय के स्थान में उवसग्गहरं और संसारदावा० की चारों थुइयाँ और शान्ति के स्थान में बृहत् शान्तिं पढ़े।
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