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________________ पाक्षिक अतिचार । क्खाण तोड़ा। भोजन करते समय एकासणा,आयंबिल-प्रमुख में चौकी, पटड़ा, अखला आदि हिलता ठीक न किया । पच्चक्खाण पारना भुलाया । बैठते नवकार न पढ़ा। उठते पच्चक्खाण न किया । निवि, आयंबिल, उपवास आदि तप में कच्चा पानी पिया । वमन हुआ । इत्यादि बाह्य तपसंबन्धी जो कोई अतिचार पक्ष-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते-अनजानते लगा हो, वह सब मन-वचन-काया कर मिच्छामि दुक्कडं । अभ्यन्तर तपः" पायच्छित्तं विणओ० " |७|| शुद्धान्तःकरणपूर्वक गुरुमहाराज से आलोचना न ली । गुरु की दी हुई आलोचना संपूर्ण न की । देव, गुरु, सङ्घ, साधर्मीका विनय न किया । बाल, वृद्ध, ग्लान, तपस्वी आदि की वैय्यावृत्य न की। वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा, धर्मकथा लक्षण पाँच प्रकार का स्वाध्याय न किया। धर्मध्यान, शुक्लध्यान ध्याया नहीं । आर्तध्यान, रौद्रध्यान ध्याया। दुःख-क्षय कर्म-क्षय के निमित्त दश बीस लोगस्स का काउसग्ग न किया । इत्यादि अभ्यन्तर तपसंबन्धी जो कोई अतिचार पक्ष-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते-अनजानते लगा हो, वह सब मन-वचन-काया कर मिच्छा मि दुक्कडं । वीर्याचार के तीन अतिचारः"अणिगृहिय बलपिरियो०" ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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