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________________ ३०६ प्रतिक्रमण सूत्र । छूटा । श्वासोच्छ्वास लेते आशातना हुई । मन्दिर तथा पौषधशाला में थूका तथा मल श्लेश्म किया, हँसी-मश्करी की, कुतूहल किया। जिनमन्दिरसम्बन्धी चौरासी आशातना में से और गुरु महाराजसम्बन्धी तेतीस आशातना में से कोई आशातना हुई हो । स्थापनाचार्य हाथ से गिरे हों या उन की पडिलेहण न हुई हो । गुरु के वचन को मान न दिया हो इत्यादि दर्शनाचारसम्बन्धी जो कोई अतिचार पक्ष-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते-अनजानते लगा हो, वह सब मन-वचन-काया कर मिच्छा मि दुक्कडं । चारित्राचार के आठ अतिचार:-. पणिहाणजोगजुत्तो, पंचर्हि समिईहिं तीहिं गुत्तीहि । एस चरित्तायारो, अट्ठविहो होइ नायवो ॥ ४ ॥ ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणासमिति और पारिष्ठापनिकासमिति मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति, ये आठ प्रवचनमाता सामायिक पौषधादिक में अच्छी तरह पाली नहीं । चारित्राचारसम्बन्धी जो कोई अतिचार पक्ष-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते-अनजानते लगा हो, वह सब मन-वचन-काया कर मिच्छा मि दुक्कडं । विशेषतः श्रापकधर्मसम्बन्धी श्रीसम्यक्त्व मूल बारह व्रत सम्यक्त्वक पाँच अतिचार: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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